Friday 9 November 2018

काफी इंतजार के बाद तुम जब पहली बार छत पर दिया लेकर आये तो लग रहा मानो एक साथ कई चांद सारे आसमां में निकल गये हो

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दीपावली का दिन है. दिन भर अपने कमरे को साफ करने में और मां के बताये पूजा के सामान लाने मेें बीत गया. अखबार के दफ्तर से छुट्टी मिली थी. दिन भर सोने का मन था लेकिन मां ने छुट्टी का दिन का पूरा वसूल लिया. अपने रूम की सफाई करते हुए एक पुरानी डायरी हाथ लग गयी. काफी दिनों से मैं इसे खोज रहा था, आज जाकर मिली है कमबख्त. जानते हो तुम्हारे जाने के बाद यही डायरी मेरा सहारा है. इस डायरी से कई यादें जुड़ी हुई है. तुमने ही मुझे मेरे जन्मदिन पर यह डायरी मुझे गिफ्ट की थी और मैं अपनी रचनाएं इस डायरी में लिखकर तुम्हें पढ़ने के लिए देता था और तुम हर बार मेरी लिखी कविता, गीत और गजल के नीचे मुझे चिढ़ाने के लिए अपना रिमार्क लिखती थी, मुझे पसंद नहीं आया और अच्छा लिखो. फिर बाद में बोलती थी बहुत अच्छा तो वो तो तुम्हें चिढ़ाने के लिए लिखा था. 


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पता है ऐसा क्यों था,क्योंकि तुम्हें  मालूम था कि मेरी हर रचना सिर्फ तुम्हारे लिए थी, उनमें सिर्फ थे....आज भी सिर्फ तुम हो. डायरी के पन्ने पलट रहा था और पुरानी यादों में डूब रहा था. मुझे याद है दीपावली की ही रात थी जब पहली बार तुमने पहली बार अपने प्यार का इजहार किया था. पर उससे पहले मैं बहुत डरा हुआ था, क्योंकि जब तुम्हें पहली बार मेरे प्यार के बारे में जानकारी मिली थी, तुमने मेरे दोस्त को बुलाकर बहुत धमकी थी...पर मैं भी हारने वाला नहीं था और तुम्हारे पीछे लगा रहा. तुम्हारे बस के आगे पीछे जाना, लंच में तुम्हारे साथ-साथ...नहीं तुम्हारे पीछे पीछे पानी पीने जाता था...जिसके बाद शायद मेरा डेडिकेशन देख कर तुम पिघल गये और अपनी सहेली के जरिये मुझे मैसेज कराया था कि दीपावली की रात वो छत पर मेरा इंतजार करेगी. 


मुझे याद है उस दिन कैसे बेचैनी में मेरा दिन बीता था. पूरा दिन शाम होने के इंतजार में बीता था. जिसके बाद आखिरकार दिन ढल गया था, पर मैं शाम से पहले से ही अपने घर के छत पर तुम्हारा इंतजार कर रहा था. काफी इंतजार के बाद तुम जब पहली बार छत पर दिया लेकर आये तो लग रहा मानो एक साथ कई चांद सरे आसमां में निकल गये हो, ये तुम्हारा प्यार था या नहीं पर यकीन मानो ऐसा लगा कि मैं जिस रोशनी की खोज बचपन से लेकर अभी तक की दिवाली में कर रहा था वो आज मुझे दिखा था, महसूस किया था. 

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जानती हो वो मेरी पहली और आखिरी सबसे अच्छी दिवाली थी. क्योंकि उस दीवाली के बाद मेरी जिंदगी में जो अंधेरा हावी हुआ, उसे दूर करते-करते अब मैं थक चुका हूं. आज फिर दीपावली की शाम है. पूरे मुहल्ले में रौनक है. घर में रौनक है, लेकिन मेरे मन के कोने में अभी भी वो अंधेरा बसा हुआ है. जिसे सिर्फ तुम भर सकती हो. फिर से शाम हो गयी है और मैं बुझे हुए मन से दिया जलाने के लिए छत के ऊपर आया हूं, हर दीपावली की तरह आज भी मुझे उम्मीद है कि तुम अपने छत पर आओगे. दीया रख कर मैं कुछ देर के लिए शहर में फैली रोशनी को देख रहा था इतने में तुम्हारे छत पर नजर पड़ी एक प्यारी सी बच्ची हाथ में फूलझड़ी लिये छत पर आकर खेलने लगी और पीछे से तुम हाथों में दिया लेकर छत पर रखने आयी थी. फिर मैं नीचे अपने कमरे में चला आया. नहीं पता की तुमने मेरी छत की ओर देखा भी या नही....पर मेरे जीवन का अंधेरा आज और गहरा गया.....