Wednesday 26 August 2020

मैं तेरा कृष्ण तुम मेरी राधा बन जाना…

 रात की शुरू हुई बारिश सुबह तक खत्म नहीं हुई थीबारिश की नमी सुबह खिड़की की कांच पर जमी हुई थीउसी के बीच से रोशनी झांक कर कमरे के अंदर आ रही थीसच बताऊं तो बडी अलसायी सी सुबह लग रही थीऐसा लग रहा था जैसे रात में नींद ही नहीं आयी होपर ऑफिस जाना था तो बिस्तर छोड़ना पड़ाबिना मन के ही नहा धोकर ऑफिस चला गया





पता नहीं मन में क्यों कोई बात आ रही थी. काम में मन नहीं लगा तो आधे दिन की छुट्टी लेकर घर आ गया. इधर बारिश है कि रूकने का नाम नहीं ले रही थी. थोड़ी थकान सी हो रही थी, दिमाग में आते कई तरह के ख्यालों के बीच कम नींद मेरे आंखों में समा गयी पता ही नहीं चला. शाम को अचानक मेरी नींच खुली, घड़ी पर देखा तो पांच बज रहे थे. बाहर से बच्चों की आवाजें आ रह थी, तो उठा और सीधा बॉलकोनी में चला गया. नीचे पार्किंग स्पेस में बच्चे सुंदर सुंदर कपड़े पहने घूम रहे थे और खेल रहे थे. कुछ के पास बांसुरी भी थी. शायद पूजा की तैयारी चल रही थी

पर आज कौन सा दिन है. बच्चों को देखा तब याद आया की आज तो जन्माष्टमी के भगवान कृष्ण का जन्मदिन. अचानक यादों के दरिया में वक्त के साथ गोते लगाते हुए कब बचपन में पहुंच गया पता ही नहीं चला. कैसे तुम उस वक्त कृष्ण बनने की जिद करते थे. और हमेशा कृष्ण बनते थे. पर मुहल्ले के लड़को को उस आयोजन में जाने की अनुमति नहीं थी. हां मुझे तुम्हारे जरिये पूरी जानकारी मिल जाती थी. पता है उस वक्त मैं तुमसे कहना चाहता था कि तुम राधा ही बनों राधा कि लिबास में तुम बहुत अच्छी लगती हो. यां यू कहूं की मैं तुम्हें अपनी राधा बनाना चाहता था.  

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उसके अगले साल की जन्माष्टमी में ऐस लगा जैसे सच में भगवान कृष्ण ने मेरी बात सुन ली, तुम राधा बने थे. तुम अपनी सहेलियों के साथ राधा बनी अपने आंगन में पूजा की तैयारी कर रही थी और मैं तुम्हें तुम्हाने आंगन से सटे घर के दूसरे तल्ले की खिड़की से एकटक देख रहा था. सच बताऊं तो उस दिन तुम्हें देखते हुए मैने ना जाने कितनी ही कहानियां और गीत लिख दिये थे. उसके बात तुम्हारी मेरी बातचीत भी बढ़ी. तुम अक्सर कॉलेज के रास्ते में मिलती थी, क्योंकि तुम्हारा भी कॉलेज उसी रास्ते पर था. हमारी दोस्ती बढ़ी फिर कब हमेशा कृष्ण बनने वाली मेरी राधा बन गयी पता ही नहीं चला. 



हम दोनों उस वक्त बहुत खुश थे नालेकिन भगवान कृष्ण की राधा उन्हें नहीं मिली तौ मैं फिर भी इंसान हूंवो हमारी आखिरी मुलाकात थीतुमने बताया था कि तुम्हारी शादी तय हो गयी हैएक बर तो मन में आया की भाग चलें पर उस वक्त ना मेरे पास अच्छी नौकरी थी और ना ही किसी शहर में रहने  का ठीकानाहम दोनो ने किस्मत के फैसले को ही मान लियातभी एक कृष्ण बना बच्चा नीचे से पुकारता है अंकल नीचे आओ नामै अतीत से वापस लौट आया थाइतने साल हो गये आज अलग हुएपता चला था कि तुम्हें बेटी हुई  हैपर यह नहीं जानता कि तुम उसे अब राधा बनाते हो या कृष्ण बनाते होमैं तो आज भी इन बच्चों में तुम्हें और मुझे ढ़ूढ़ रहा हूं… फिर वहीं बात मेरे मन  में आती है जब मैं तुमसे कहता था इस जन्माष्टमी मै तेरा कृष्ण बनूंगातुम मेरी राधा बन जाना



Tuesday 31 March 2020

अरे मीना ऐसे भला कोई छोड़ कर जाता है क्या... 40 दिन के साथ के लिए 40 बरस किया इंतजार ...

अरे मीना.... तुम ऐसे काहे देखती है, हमको बहुत लाज लगता है. तब मीना एक टक होठो पर थोड़ी सी मुस्कान के साथ कहती थी ए जी आपको देख कर मन नहीं भरता है. मीना को गये आज पूरे चार साल 42 दिन हो गये थे. पर  गंदूरा के लिए तो जैसे वो कल की ही बात थी. दसियों एकड़ में फैले उसके खेत के हरियाली के बीच दोनो आकर जब पहली बार बैठे थे. गंदूरा पूरे राज्य के लिए एक जाना माना किसान था. राज्य सरकार ने उसे सम्मानित भी किया था. अपने मां बाप की सेवा करते हुए कब चार दशक बीत गये पता ही नहीं चला था. 


पर जब चार दशक बाद शादी भी हुई तो महज 40 दिन तक चली. काल कभी कभी इतना निर्दयी हो सकता है गंदूरा ने कभी यह नहीं सोचा था. सात जन्मों का साथ निभाने का वाद कर उसके साथ उसके घर आयी उसकी संगिनी ने महज 40 दिनों में गंदूरा का  साथ छोड़कर मौत का दामन थाम लिया. इन 40 दिनों में उसने गंदूरा को इतना प्यार दिया था जितना उसे चार दशक में महसूस नहीं हुआ था. 


दोनों साथ में गुलाबी शहर राजस्थान देखने गये. पर दोनों को क्या पता था कि हवा महल में बीतायी गयी वो शाम उनके जीवन में दुबारा नहीं आयेगी. रेगिस्तान में फैले रेत की तरह उनकी जिंदगी हवा के एक झोंके के साथ बिखर जायेगी. गंदूरा को भी कहां पता था कि उसकी जिंदगी दूर तलक फैले रेगिस्तान में फंसे उस प्यासे मुसाफिर कि तरह हो जायेगी, जो पानी की तलाश में दूर तक देखता है पर नाउम्मीदी के रेत के सिवा उसे कुछ नहीं मिलता है. 

गंदूरा को आज भी याद है जब पहली बार मीना को राजस्थान जाने के लिए हवाई अड्डे पर ले गया था. तब पहली बार हवाई जहाज में बैठते हुए मीना बहुत डर रही थी.पर जैसे ही गंदूरा ने उसका हाथ थामा था वो शांत होकर आंख बंद करके हवाई अड्डे पर बैठ गयी थी और एक ही बात बोली थी, आप है तो फिर किस बात का डर है. पर आज वक्त की कुटिल चाल देखिए मीना 40 दिन अपना प्यार बरसाने के बाद गंदूरा को अकेले तड़पता हुआ छोड़ कर खुद अकेले एक अंनंतहीन यात्रा पर निकल गयी. उसे हुआ भी क्या था. 

गंदूरा आज भी कहता है कि आखिर क्या गलती हुई मेरे से कि एक ऐसी सजा मैं भुगत रहा हूं जिसके लिए मेरा गुनाह सिर्फ इतना था कि मैने मीना से प्यार किया था. गुलजार के शब्द चूरा कर कहूं तो दर्द हलका है सांस भारी है जिये जाने की रस्म जारी है.. आखिर हुआ क्या था उसको, पेट दर्द, अरे मीना ऐसे भला कोई छोड़ कर जाता है क्या. अभी तक तो तुमको ठीक से देख भी नहीं पाये थे.  एक बार तो बताती कि दर्द असहनीय हो रहा है. तुम नहीं बट पाओगे. हम तेरे लिए मौत से भी लड़ जाते रे मीना क्यो छोड़ कर चली गयी हमको. गंदूरा अपने खेत पर उसी जगह पर बैठ कर फूट-फूट कर रो रहा था. जिस जगह पर मीना बैठकर गंदूरा को देखती रहती थी. 

 शाम का वक्त हो चला था. दिनभर जलने के बाद सुरज भी नरम हो चला था.  लाल होकर और बड़ा हो गया था. दूर तक धान कटे हुए खेत थे. पास में बहती एक नदीं के दोनों ओर स्थित पेड़ों में चिड़ियों का झुंड अपने घोसलें के पास आकर चहचहा रहा था. पूरा दिन बीताने के बाद एक साथ परिवार के आने की खुशी थी. पर वहीं थोड़ी दूर पर बैठा गंदूरा एकटक उस डूबते हुए लाल गोले को देख रहा था. लालिमा फैली हुई थी. नदीं पर बहती हुई धारा में लाल परत तैरती हुई दिखाई दे रही थी. 


परिवार से मिलने की खुशी में चिड़ियां चहचहा रही थी पर गंदुरा के मन में उदासी छायी हुई थी. वो घर जाना चाह रहा था पर घर...उसकी दो दुनिया ही चार साल पहले खत्म हो गयी थी. ना चाहते हुए भी गंदूरा उठा और हाथ में लाठी लेकर वक्त की मार से कमजोर हो चुके काया को लाठी के सहारे लेकर धीरे-धीरे घर की ओर निकल पड़ा. 

Tuesday 18 February 2020

सिर्फ मेरी सुनता है और चलता रहता है....मेरी ही तरह बहुत लोगों से मिलता है उनकी कहानियां सुनता है.





आपके लिए यह महज एक स्पेंलडर बाइक हो सकती है लेकिन मेरे लिए यह मेरे साथ बिना रुके बिना थके 55 हजार किलोमीटर चलने वाला साथी है. महज तीन सालों में मेरे साथ इसने एक लंबा सफर तया किया. पर कभी आराम नहीं मांगा. चाहे चिलचिलाती धूप और गर्म हो चुकी अलकतरे की सड़क हो, या झमाझम बारिश में कीचड़ और फिसलन भरे गांव के रास्ते हो या कंपकपाती ठंड हो.









बस जब मैने कहा चलो उसने अपनी हा कहते हुए एक बार में स्टार्ट हुआ. रात हो दिन कभी मना नहीं किया इसने इसलिए यह मेरा सच्चा साथी है. रिपोर्टिंग के सिलसिले में कई ऐसे जगहों पर गया, घने जंगलों के अंदर गया. अगर कहीं टायर भी पंचर हो जाये तो 20 से 25 किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा, पर ऐसी नौबत कभी नहीं आयी. बाइक पंचर भी हुई तो ऐसी जगह जहां पर तुरंत बनायी जा सके. मेरे साथ मैं इसे ऐसे रास्तों पर भी ले गया जहां पर इंसान का चलना मुश्किल है.



पर बिना शिकायत किये यह मुझे बैठाकर उसमें भी चला. खड़ी चढ़ान हो तब भी मुझसे उतरने के लिए नहीं कहा, बस मुझे बैठाकर रास्ते तक ले ही आया. यह मेरे लिए मशीन और कलपूर्जो से बना सामान नहीं है, यह मेरे लिए मेरा हमसफर और दोस्त है जो हरसमय सफर में मेरे साथ रहता है. सिर्फ मेरी सुनता है और चलता रहता है....मेरी ही तरह बहुत लोगों से मिलता है उनकी कहानियां सुनता है.


Monday 16 December 2019

इनकी जिंदगी हमेशा के लिए गरीबी के अंधेरे से बाहर निकल जायेगी या फिर..... धीरे धीरे शोर और रोशनी फिर से अंधेरे में गुम हो जायेगी.




Pole malkambh Pic By Pawan Kumar
पास के एयरपोर्ट से उड़ते हवाई जहाज, सपनों की ऊंची उड़ान को पंख दे रही है. तो आसमान के रोशनी रहते दुधिया चमक के साथ निकल आया चांद पूरे आसमान में अपनी चमक छोड़ देने का हौसला प्रदान करता है, और जब बाते आसमान से हो रही हो, बराबरी आसमान से हो रही हो, तो नीचे जमीन की क्या मजाल की आसमान में उड़ रहे सपने को रोक सकेें. पर ऐसा नहीं है कि नीचे पर कतरने के प्रयास नहीं हो रहे हैं. इस प्रयास में मैदान में मौजूद छोटे-छोटे मच्छर भी कुपोषित शरीर से खून चूसने की फिराक में लगे हैं. कुपोषित शरीर खो-खो और मलखम्भ के खिलाड़ियों के हैं. इन्होंने अपनी जीतोड़ मेहनत करके देश राज्य और जिले का नाम तो रोशन कर दिया है, लेकिन इन्हें इस हाल से ऊबारने वाला कोई नहीं है. खेल के मानको के आधार पर निर्धारित भोजन भले ही इन्हें नसीब नो हो पर इनके हिस्से में मेडल जरूर है

कहने के लिए रांची के जगन्नाथपुर थाना के पीछे यह डे बोर्डिंग सेंटर है पर ना खुद का मैदान है ना कोई कमरा है, जहां पर खिलाड़ी अपने सामान रख सकें. सेंटर में ना पानी की व्यवस्था है और ना ही शौचालय की. हां एक समतल जमीन है. एक कोच है. मलखंभ के नाम पर एक खूंटा है. रोप मलखंभ के नाम पर आम पेड़ की डाली से लटकी एक रस्सी है. इतनी कमियों के बीच यहां के खिलाड़ी दिल्ली तक अपनी धाक जमा चुके हैं. बच्चियां झारखंड मलखंभ क्वीन का अवार्ड जीत चुकी हैं. छत्तीसगढ़ और गोवा में अपने खेल का प्रदर्शन कर चुके हैं. खो-खो में भी यहां के बच्चों को बेहतरीन प्रदर्शन रहा है

Rope Malkambh Pic BY Pawan Kumar
लगभग सभी बच्चे ऐसे परिवारों से आते हैं जो अपने बच्चों को क्रिकेट खेलने के लिए कीट खरीद कर नहीं दे सकते हैं. डॉक्टर या इंजीनियर बनाने के लिए पैसे नहीं दे सकते हैं. ऐसे परिवारों के बच्चे एक ऐसा खेल खेलते हैं जिसमें सबसे ज्यादा स्टेमिना की जरूरत पड़ती है. मैदान में जरा सा कमजोर हुए और हार पक्की है. रोप मलखंभ एक ऐसा खेल है जिसमें रस्सी के सहारे झूलकर जमीन पर करने वाले सभी प्रकार के योग क्रियायें की जाती है. कुल 80 प्रकार के योग होते हैं. इसके लिए डेढ़ या फिर दो मिनट का समय होता है. पलक झपकते ही योगमुद्रा बदलनी पड़ती है, वो भी आसमान में लटक कर. चैंपियनशिप के दौरान तो गिरने पर चोट से बचाने के लिए मोटे-मोटे गद्दे होते हैं, पर यहां अभ्यास के दौरान जब सबसे अधिक जरूरत होती है तो नीचे सख्त जमीन गर्दन तोड़ने के लिए तैयार रहती है

Rope Malkambh Pic By Pawan Kumar
पोल मलखंभ में पोल के सहारे की योग क्रिया करनी पड़ती है. इसमें भी गिर जाने पर खतरा कम नहीं है. पर जान-जोखिम में डालकर खेलने वाले इन 10-15 साल के बच्चों को क्या मिलता है, बस उन्हें खुद का सुकून. पर इसके भरोसे पेट नहीं भरता है. जिस राज्य में सिर्फ चुनाव के नाम पर 500 करोड़ रूपये खर्च कर दिये जाते हैं, उस राज्य की राजधानी में इस खेल को खेल रहे बच्चे किसी तरह अपना पेट भरते हैं. इनमें से एक ऐसा बच्चा भी है जो दिन में स्कूल जाता है. शाम में अभ्यास करता है और फिर फूटपाथ पर अपनी चाय-पकौड़ी की दुकान संभालता है. बच्चों के खेल और कौशल को देखते हुए चांद की चमक और बढ़ गयी है. आसमान में उड़ रहे हवाई जहाज का सिर्फ शोर और जगमग रोशनी दिखाई दे रही है. एक सवाल लेकर बच्चों के साथ मैं भी वहां से निकल जाता हूं. क्या रात ढलते ही चांद की बढ़ती चमक की तरह इनकी जिंदगी हमेशा के लिए गरीबी के अंधेरे से बाहर निकल जायेगी या फिर हवाई जहाज के शोर और लाल रोशनी की तरह कुछ दूर जाकर धीरे धीरे शोर और रोशनी फिर से अंधेरे में गुम हो जायेगी




Pole Malkambh Pic by Pawan Kumar


Thursday 4 April 2019

हाम तो पेपर में पइढ़ रही की सत्ता कुर्सी कर खेल होवेला तो इ चौकी आउर चौकीदार बीच में कहां से आय गेलक




आपन गरू छगरी के गोहार घर में ढुकाय के मंगरा बूढ़ा कुइंया में हाथ-गोड़ धोय के आपन पीड़ा में बैइठ के चीनी चाय पीयत रहे. सांझ कर बेरा रहेभइर दिन कर रौदाल मंगरा के थाकल नियर लागत रहे से ले मने मन एकाइगो संग भी खोजत रहे कि कई मिलबैं तो चरिया घर जाय के एकाइ गो हड़िया पीयबमंगरा आपन  पीड़ा में बैइठ के इ सोचत रहे, तखने करिखा लखे करिया मुंह लेके थाकल हारल  जागे आय गेलक

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मंगरा उके देइख के कहलक की कहां रे जागे कहां जाय रहिस आइज गरू चराय भी नई आले. तो जागे कहलक की रांची जाय रही बूढ़ाढइर दिन से खोखी ठिक नई होअत रहे थो जाय रही रिम्स में देखाय, एतई भीड़ रहे की का बताइउ. एतइ रोगी दुनिया में बइढ़ जा हथू. तोहिन जवान रहा से बेरा अइसन भीड़ होअत रहे. मंगरा कहलक की नई रे बाबू हामिन बीमार कम पड़त रहीदेसी खात पीयत रही लेकिन अब कर परिया में तो हवा बसात सभे बदइल गेलकहाइब्रिड कर चक्कर में देसी सिराय गेलक, से ले अब कर जवान छोड़ां मने भी फारम मुर्गी लखे होय जा हैं









जागे बीच में टोकलक आऊर कहलक इ सब बात के छोड़ इ बातव बूढ़ा किरांची में हाम एगो बड़का गो तिरपाल लखे कपड़ा देखलिअउ, जेके लोहा कर खूंटा में बाइंध दे रहथू. उकर में लिखल रहउ, मैं हूं चौकीदार. उकर में मोदी कर बड़का गो फोटो रहे. तुरंत मंगरा कहलक अरे हां रे आइज गांवों में आंय रहैं बीडीओ मने सबके वोट देवे कहले. कहत रहैं वोट जरूर देबे. तो जागे कहलक ठीके कहथीस बूढ़ा, हाम भी रेडियों में सुइन रही.  




फिर जागे कहलक लेकिन हामके इ समझ में नई आवथे कि चौकीदार काहे. हाम तो पेपर में पइढ़ रही की सत्ता कुर्सी कर खेल होवेला तो इ चौकी आउर चौकीदार बीच में कहां से आय गेलक. मंगरा कहलक हामिन कर जमाना में कुर्सी से काम चलत रहे,काहे कि सब कुछ कम रहे. अब सब कुछ ज्यादा होय गेलक से ले अब चौकीदार होय गेलेंय. आउर इकर फायदा भी है रे जागे, चौकी में बगरा जगह रहेला, जखन मन बैइठ, जखन मन सुत. जागे कहकल लेकिन इ बगरा ठांव मड़ियायला, तुंरत मंगरा कहलक अरे छोड़ा फायदा भी तो है इकर से


एखन तोय एक दिन में रांची घुइम के डॉक्टर के देखायके चइल आले, पइसा भी नई लागलऊ. रोड बनलऊ से ले नय. हामर देख पहिले नून चाय पियले ले भी एक कचा नय मिलत रहे अब देख चीनी चाय पियउला. राइत के अब अंधार में नय रहेक पड़उला, पक्का मकान देख बनथउ. अब राइत अंधार के डिब्बा लेके दोइन बटे नय जाइक पड़उला. जागे बीच में टोकाय के कहलक तो इकर से चौकी कर का संबंध हउ बूढ़ा. मंगरा कहलक सुन रे बाबू तखन से तोके एहे समझात रही... सेले अब कुर्सी नहीं चौकीदार हो. गोलक, काहेकि चौकी से ज्यादा फायदा है, चौकीदार से ज्यादा फायदा है. तखने जागे कर फोन में फोन आलक, जागे स्पीकर ऑन करलक तो आवाज आलक मै भी चौकीदार, फिर दुनो चरिया घर चइल गेलएं

Saturday 16 March 2019

तुम्हारे बिना मैं एक कदम नहीं चल सकती थी, पर पूरी जिंदगी जीने के लिए निकल गयी



बाहर बारिश हो रही थी, इसलिए ऑफिस से नहीं निकल रहा था, सोच रहा था कि बारिश रूक जाये तब ही घर के लिए निकलूंगा. काम नहीं था तो फेसबुक पर कुछ पुराने मैसेजस पढ़ रहा था...तुम तो समझ गये होगे की वो मैजेस तुम्हारे ही रहे होंगे..तुम्हारी प्रोफाइल में जाकर तुम्हारे बारे में जानने की कोशिश कर रहा था.. प्रोफाइल देखा तो हर बार कि तरह वही तीन साल पहले अपलोड कि हुई तुम्हारी फोटो दिखी, जिसमें तुम अपनी बेटी और पति के साथ कहीं समुद्र के किनारे खड़े थे...पीछे दूर तक फैला समंदर था. उसके बाद की कोई एक्टीवीटि तुम्हारे प्रोफाइल पर नहीं थी. ऐसा लग रहा था मानों तुम्हारे पीछे दूर तक दिख रहा समंदर उठकर मेरे शहर में बादल बनकर आया है, और बरस रहा है. क्योंकि इस बार हर एक घंटे पर मौसम विभाग का पूर्वानुमान बदल रहा था. मुझे घर जाना था पर मैं फिर से पुराने दिनों में चला गया. 


मुझे याद है जब आखिरी बार तीन साल पहले हमारी बात पांच महीने तीन दिन बाद हुई थी तब तुमने कहा था कि तुम मुझे बहुत मिस करती हो और जवाब में मै कुछ नहीं कह पाया था, क्योंकि अचानक तुमने फोन काट दिया था..उसके बाद से आज तक तुम्हारा कोई फोन नहीं आया. मैं तुमसे कहना चाहता था कि हां मैं भी तुम्हे बहुत मिस करता हूं, पर तुमने सुनने से पहले ही फोन  रख दिया था पुराने मैसेजेस को पढ़ते हुए मैं तीन साल पहले चला गया था कि अचानक मेरा फोन बजा.. मैने देखा तो ट्रू कॉलर में तुम्हारा नाम दिखा..मैने फोन उठाया तो उधर से आवाज आयी, हैलो कैसे हो..मैं कुछ समझ पाता इससे पहले तुमने कहा कि तुम भूल गये हो मुझे, मैने कहा नहीं.....उसने पूछा कहां हो, मैने कहा ऑफिस में हूं. उसने कहा कि तुम्हारे शहर का तो हाल बेहाल है..बारिश ही बारिश..मैने सोचा, शहर की बारिश तो तुम्हें दिखाई दे गयी पर मेरे अंदर जो हर रोज बारिश होती है वो तुम कहां देख पा रही हो..इतने में उसने कहा कि तुम्हारे शहर में हूं...मिलोगे नहीं.. 


 कुछ देर बाद मैं बारिश में भींगते हुए उसके घर के पास वाले मॉल में था....वो वहां मेरा इंतजार कर रही थी..मैं पूरा भींग चुका था... मैं कुछ बोलता इससे पहले उसने कहा कि कल मुझे जाना है और मैं तुमसे मिले बिना यहां से चली जाऊं ऐसा नहीं हो सकता है...तुमसे कई सारे सवाल करने हैं. बारिश में तुम्हारे बाल भी हल्क भीगे हुए थे, तुम बहुत सुंदर लग रहे थे. मैने कहा सवाल पूछो... उसने कहा इतने दिन कैसे रहे मेरे बिना...तुम्हे मेरे से बात करने का मेरी आवाज सुनने का मन नहीं करता था...मैने कुछ नहीं कहा, उसने कहा बहुत मिस करती हूं तुम्हे आज भी..


इसलिए तुमसे मिलने के लिए खुद को रोक नहीं पायी. जमाना कुछ भी कहे तुम हमेशा मेरे रहोगे..यह अलग बात है कि हमदोनों ने अलग रास्ते अपने लिए चुने पर आज लगता है कि तुम्हारे बिना मैं एक कदम नहीं चल सकती थी, पर पूरी जिंदगी जीने के लिए निकल गयी. पर तुमने एक बार भी नहीं रोका. एक बार तो आवाज दिये होते....तुम्हारे आवाज के इंतजार में मैं आगे बढ़ते-बढ़ते इतनी दूर कब निकल गयी पता ही नहीं चला..अब मैं जा रही हूं. मौका मिलेगा तो फिर फोन करूंगी...वो चली गयी और मैं उसी  समंदर की बारिश में भीगता  हुआ सड़क पर जा रहा था. 


Saturday 29 December 2018

रिश्ता तो हमदोनो के बीच कब का खत्म हो चुका है



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जानते हो आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है... रात के लगभग एक बज रहे हैं, आंखों में नींद नहीं है. जबकि दिन भर ऑफिस में काम करते हुए यह सोच रहा था कि आज घर जाकर जल्दी सो जाऊंगा. पर शायद भूल गया था कि अब चैन की नींद कहां है. घर पहुंचा तो वही रोज की खिटपिट थी. शादी के डेढ़ साल के अंदर रिश्ता तलाक तक पहुंच जायेगा यह कभी सोचा नहीं था. मुझे तो लगता है बस अब कागजी कार्रवाई बाकी रह गयी है. रिश्ता तो हमदोनो के बीच कब का खत्म हो चुका है. 


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कभी कभी तो मन करता है भाग जाऊं कहीं दूर, ताकि एक पल के लिए थोड़ा सुकून के साथ रह सकूं. पर मां को देखकर हर बार कदम रुक जाते हैं. मां अक्सर यह कहती है बेटा मेरी वजह से तुम्हारी जिंदगी खराब हो गयी.  हां खराब हो गयी है मेरी जिंदगी... अब लगता है काश सिर्फ तुम होते तो कितना अच्छा होता. 





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मैं आगे नहीं बढ़ता पर घरवालों की खुशी के लिए मैंने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी. आज रात भी वही हो रहा है, बीवी की जुबान चल रही है. वही पुरानी बात, तुम्हारी मां खराब, तुम्हारी बहन खराब, मेरे लिए समय नहीं है, पैसा नहीं है.आज रात सच में तकलीफ हुई. लगा बहुत लंबा वक्त ले लिया एक फैसला करने में कि अब नहीं, साथ में रहना मुश्किल है मैं तलाक लेना चाहता हूं.