Wednesday 26 August 2020

मैं तेरा कृष्ण तुम मेरी राधा बन जाना…

 रात की शुरू हुई बारिश सुबह तक खत्म नहीं हुई थीबारिश की नमी सुबह खिड़की की कांच पर जमी हुई थीउसी के बीच से रोशनी झांक कर कमरे के अंदर आ रही थीसच बताऊं तो बडी अलसायी सी सुबह लग रही थीऐसा लग रहा था जैसे रात में नींद ही नहीं आयी होपर ऑफिस जाना था तो बिस्तर छोड़ना पड़ाबिना मन के ही नहा धोकर ऑफिस चला गया





पता नहीं मन में क्यों कोई बात आ रही थी. काम में मन नहीं लगा तो आधे दिन की छुट्टी लेकर घर आ गया. इधर बारिश है कि रूकने का नाम नहीं ले रही थी. थोड़ी थकान सी हो रही थी, दिमाग में आते कई तरह के ख्यालों के बीच कम नींद मेरे आंखों में समा गयी पता ही नहीं चला. शाम को अचानक मेरी नींच खुली, घड़ी पर देखा तो पांच बज रहे थे. बाहर से बच्चों की आवाजें आ रह थी, तो उठा और सीधा बॉलकोनी में चला गया. नीचे पार्किंग स्पेस में बच्चे सुंदर सुंदर कपड़े पहने घूम रहे थे और खेल रहे थे. कुछ के पास बांसुरी भी थी. शायद पूजा की तैयारी चल रही थी

पर आज कौन सा दिन है. बच्चों को देखा तब याद आया की आज तो जन्माष्टमी के भगवान कृष्ण का जन्मदिन. अचानक यादों के दरिया में वक्त के साथ गोते लगाते हुए कब बचपन में पहुंच गया पता ही नहीं चला. कैसे तुम उस वक्त कृष्ण बनने की जिद करते थे. और हमेशा कृष्ण बनते थे. पर मुहल्ले के लड़को को उस आयोजन में जाने की अनुमति नहीं थी. हां मुझे तुम्हारे जरिये पूरी जानकारी मिल जाती थी. पता है उस वक्त मैं तुमसे कहना चाहता था कि तुम राधा ही बनों राधा कि लिबास में तुम बहुत अच्छी लगती हो. यां यू कहूं की मैं तुम्हें अपनी राधा बनाना चाहता था.  

Add caption


उसके अगले साल की जन्माष्टमी में ऐस लगा जैसे सच में भगवान कृष्ण ने मेरी बात सुन ली, तुम राधा बने थे. तुम अपनी सहेलियों के साथ राधा बनी अपने आंगन में पूजा की तैयारी कर रही थी और मैं तुम्हें तुम्हाने आंगन से सटे घर के दूसरे तल्ले की खिड़की से एकटक देख रहा था. सच बताऊं तो उस दिन तुम्हें देखते हुए मैने ना जाने कितनी ही कहानियां और गीत लिख दिये थे. उसके बात तुम्हारी मेरी बातचीत भी बढ़ी. तुम अक्सर कॉलेज के रास्ते में मिलती थी, क्योंकि तुम्हारा भी कॉलेज उसी रास्ते पर था. हमारी दोस्ती बढ़ी फिर कब हमेशा कृष्ण बनने वाली मेरी राधा बन गयी पता ही नहीं चला. 



हम दोनों उस वक्त बहुत खुश थे नालेकिन भगवान कृष्ण की राधा उन्हें नहीं मिली तौ मैं फिर भी इंसान हूंवो हमारी आखिरी मुलाकात थीतुमने बताया था कि तुम्हारी शादी तय हो गयी हैएक बर तो मन में आया की भाग चलें पर उस वक्त ना मेरे पास अच्छी नौकरी थी और ना ही किसी शहर में रहने  का ठीकानाहम दोनो ने किस्मत के फैसले को ही मान लियातभी एक कृष्ण बना बच्चा नीचे से पुकारता है अंकल नीचे आओ नामै अतीत से वापस लौट आया थाइतने साल हो गये आज अलग हुएपता चला था कि तुम्हें बेटी हुई  हैपर यह नहीं जानता कि तुम उसे अब राधा बनाते हो या कृष्ण बनाते होमैं तो आज भी इन बच्चों में तुम्हें और मुझे ढ़ूढ़ रहा हूं… फिर वहीं बात मेरे मन  में आती है जब मैं तुमसे कहता था इस जन्माष्टमी मै तेरा कृष्ण बनूंगातुम मेरी राधा बन जाना



Tuesday 31 March 2020

अरे मीना ऐसे भला कोई छोड़ कर जाता है क्या... 40 दिन के साथ के लिए 40 बरस किया इंतजार ...

अरे मीना.... तुम ऐसे काहे देखती है, हमको बहुत लाज लगता है. तब मीना एक टक होठो पर थोड़ी सी मुस्कान के साथ कहती थी ए जी आपको देख कर मन नहीं भरता है. मीना को गये आज पूरे चार साल 42 दिन हो गये थे. पर  गंदूरा के लिए तो जैसे वो कल की ही बात थी. दसियों एकड़ में फैले उसके खेत के हरियाली के बीच दोनो आकर जब पहली बार बैठे थे. गंदूरा पूरे राज्य के लिए एक जाना माना किसान था. राज्य सरकार ने उसे सम्मानित भी किया था. अपने मां बाप की सेवा करते हुए कब चार दशक बीत गये पता ही नहीं चला था. 


पर जब चार दशक बाद शादी भी हुई तो महज 40 दिन तक चली. काल कभी कभी इतना निर्दयी हो सकता है गंदूरा ने कभी यह नहीं सोचा था. सात जन्मों का साथ निभाने का वाद कर उसके साथ उसके घर आयी उसकी संगिनी ने महज 40 दिनों में गंदूरा का  साथ छोड़कर मौत का दामन थाम लिया. इन 40 दिनों में उसने गंदूरा को इतना प्यार दिया था जितना उसे चार दशक में महसूस नहीं हुआ था. 


दोनों साथ में गुलाबी शहर राजस्थान देखने गये. पर दोनों को क्या पता था कि हवा महल में बीतायी गयी वो शाम उनके जीवन में दुबारा नहीं आयेगी. रेगिस्तान में फैले रेत की तरह उनकी जिंदगी हवा के एक झोंके के साथ बिखर जायेगी. गंदूरा को भी कहां पता था कि उसकी जिंदगी दूर तलक फैले रेगिस्तान में फंसे उस प्यासे मुसाफिर कि तरह हो जायेगी, जो पानी की तलाश में दूर तक देखता है पर नाउम्मीदी के रेत के सिवा उसे कुछ नहीं मिलता है. 

गंदूरा को आज भी याद है जब पहली बार मीना को राजस्थान जाने के लिए हवाई अड्डे पर ले गया था. तब पहली बार हवाई जहाज में बैठते हुए मीना बहुत डर रही थी.पर जैसे ही गंदूरा ने उसका हाथ थामा था वो शांत होकर आंख बंद करके हवाई अड्डे पर बैठ गयी थी और एक ही बात बोली थी, आप है तो फिर किस बात का डर है. पर आज वक्त की कुटिल चाल देखिए मीना 40 दिन अपना प्यार बरसाने के बाद गंदूरा को अकेले तड़पता हुआ छोड़ कर खुद अकेले एक अंनंतहीन यात्रा पर निकल गयी. उसे हुआ भी क्या था. 

गंदूरा आज भी कहता है कि आखिर क्या गलती हुई मेरे से कि एक ऐसी सजा मैं भुगत रहा हूं जिसके लिए मेरा गुनाह सिर्फ इतना था कि मैने मीना से प्यार किया था. गुलजार के शब्द चूरा कर कहूं तो दर्द हलका है सांस भारी है जिये जाने की रस्म जारी है.. आखिर हुआ क्या था उसको, पेट दर्द, अरे मीना ऐसे भला कोई छोड़ कर जाता है क्या. अभी तक तो तुमको ठीक से देख भी नहीं पाये थे.  एक बार तो बताती कि दर्द असहनीय हो रहा है. तुम नहीं बट पाओगे. हम तेरे लिए मौत से भी लड़ जाते रे मीना क्यो छोड़ कर चली गयी हमको. गंदूरा अपने खेत पर उसी जगह पर बैठ कर फूट-फूट कर रो रहा था. जिस जगह पर मीना बैठकर गंदूरा को देखती रहती थी. 

 शाम का वक्त हो चला था. दिनभर जलने के बाद सुरज भी नरम हो चला था.  लाल होकर और बड़ा हो गया था. दूर तक धान कटे हुए खेत थे. पास में बहती एक नदीं के दोनों ओर स्थित पेड़ों में चिड़ियों का झुंड अपने घोसलें के पास आकर चहचहा रहा था. पूरा दिन बीताने के बाद एक साथ परिवार के आने की खुशी थी. पर वहीं थोड़ी दूर पर बैठा गंदूरा एकटक उस डूबते हुए लाल गोले को देख रहा था. लालिमा फैली हुई थी. नदीं पर बहती हुई धारा में लाल परत तैरती हुई दिखाई दे रही थी. 


परिवार से मिलने की खुशी में चिड़ियां चहचहा रही थी पर गंदुरा के मन में उदासी छायी हुई थी. वो घर जाना चाह रहा था पर घर...उसकी दो दुनिया ही चार साल पहले खत्म हो गयी थी. ना चाहते हुए भी गंदूरा उठा और हाथ में लाठी लेकर वक्त की मार से कमजोर हो चुके काया को लाठी के सहारे लेकर धीरे-धीरे घर की ओर निकल पड़ा. 

Tuesday 18 February 2020

सिर्फ मेरी सुनता है और चलता रहता है....मेरी ही तरह बहुत लोगों से मिलता है उनकी कहानियां सुनता है.





आपके लिए यह महज एक स्पेंलडर बाइक हो सकती है लेकिन मेरे लिए यह मेरे साथ बिना रुके बिना थके 55 हजार किलोमीटर चलने वाला साथी है. महज तीन सालों में मेरे साथ इसने एक लंबा सफर तया किया. पर कभी आराम नहीं मांगा. चाहे चिलचिलाती धूप और गर्म हो चुकी अलकतरे की सड़क हो, या झमाझम बारिश में कीचड़ और फिसलन भरे गांव के रास्ते हो या कंपकपाती ठंड हो.









बस जब मैने कहा चलो उसने अपनी हा कहते हुए एक बार में स्टार्ट हुआ. रात हो दिन कभी मना नहीं किया इसने इसलिए यह मेरा सच्चा साथी है. रिपोर्टिंग के सिलसिले में कई ऐसे जगहों पर गया, घने जंगलों के अंदर गया. अगर कहीं टायर भी पंचर हो जाये तो 20 से 25 किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा, पर ऐसी नौबत कभी नहीं आयी. बाइक पंचर भी हुई तो ऐसी जगह जहां पर तुरंत बनायी जा सके. मेरे साथ मैं इसे ऐसे रास्तों पर भी ले गया जहां पर इंसान का चलना मुश्किल है.



पर बिना शिकायत किये यह मुझे बैठाकर उसमें भी चला. खड़ी चढ़ान हो तब भी मुझसे उतरने के लिए नहीं कहा, बस मुझे बैठाकर रास्ते तक ले ही आया. यह मेरे लिए मशीन और कलपूर्जो से बना सामान नहीं है, यह मेरे लिए मेरा हमसफर और दोस्त है जो हरसमय सफर में मेरे साथ रहता है. सिर्फ मेरी सुनता है और चलता रहता है....मेरी ही तरह बहुत लोगों से मिलता है उनकी कहानियां सुनता है.