रात की शुरू हुई बारिश सुबह तक खत्म नहीं हुई थी. बारिश की नमी सुबह खिड़की की कांच पर जमी हुई थी. उसी के बीच से रोशनी झांक कर कमरे के अंदर आ रही थी. सच बताऊं तो बडी अलसायी सी सुबह लग रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे रात में नींद ही नहीं आयी हो. पर ऑफिस जाना था तो बिस्तर छोड़ना पड़ा. बिना मन के ही नहा धोकर ऑफिस चला गया…

पता नहीं मन में क्यों कोई
बात आ रही थी. काम में मन नहीं लगा तो आधे दिन की छुट्टी लेकर
घर आ गया. इधर बारिश है कि रूकने का नाम नहीं ले रही थी.
थोड़ी थकान सी हो रही थी, दिमाग में आते कई तरह
के ख्यालों के बीच कम नींद मेरे आंखों में समा गयी पता ही नहीं चला. शाम को अचानक मेरी नींच खुली, घड़ी पर देखा तो पांच बज
रहे थे. बाहर से बच्चों की आवाजें आ रह थी, तो उठा और सीधा बॉलकोनी में चला गया. नीचे पार्किंग स्पेस
में बच्चे सुंदर सुंदर कपड़े पहने घूम रहे थे और खेल रहे थे. कुछ के पास बांसुरी भी थी. शायद पूजा की तैयारी चल रही
थी.
पर आज कौन सा दिन है. बच्चों को देखा तब याद आया की आज तो जन्माष्टमी के भगवान कृष्ण का जन्मदिन.
अचानक यादों के दरिया में वक्त के साथ गोते लगाते हुए कब बचपन में पहुंच
गया पता ही नहीं चला. कैसे तुम उस वक्त कृष्ण बनने की जिद करते
थे. और हमेशा कृष्ण बनते थे. पर मुहल्ले
के लड़को को उस आयोजन में जाने की अनुमति नहीं थी. हां मुझे तुम्हारे
जरिये पूरी जानकारी मिल जाती थी. पता है उस वक्त मैं तुमसे कहना
चाहता था कि तुम राधा ही बनों राधा कि लिबास में तुम बहुत अच्छी लगती हो. यां यू कहूं की मैं तुम्हें अपनी राधा बनाना चाहता था.
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उसके अगले साल की जन्माष्टमी में ऐस लगा जैसे सच में भगवान कृष्ण ने मेरी बात सुन ली, तुम राधा बने थे. तुम अपनी सहेलियों के साथ राधा बनी अपने आंगन में पूजा की तैयारी कर रही थी और मैं तुम्हें तुम्हाने आंगन से सटे घर के दूसरे तल्ले की खिड़की से एकटक देख रहा था. सच बताऊं तो उस दिन तुम्हें देखते हुए मैने ना जाने कितनी ही कहानियां और गीत लिख दिये थे. उसके बात तुम्हारी मेरी बातचीत भी बढ़ी. तुम अक्सर कॉलेज के रास्ते में मिलती थी, क्योंकि तुम्हारा भी कॉलेज उसी रास्ते पर था. हमारी दोस्ती बढ़ी फिर कब हमेशा कृष्ण बनने वाली मेरी राधा बन गयी पता ही नहीं चला.
हम दोनों उस वक्त बहुत खुश थे ना, लेकिन भगवान कृष्ण की राधा उन्हें नहीं मिली तौ मैं फिर भी इंसान हूं. वो हमारी आखिरी मुलाकात थी, तुमने बताया था कि तुम्हारी शादी तय हो गयी है. एक बर तो मन में आया की भाग चलें पर उस वक्त ना मेरे पास अच्छी नौकरी थी और ना ही किसी शहर में रहने का ठीकाना. हम दोनो ने किस्मत के फैसले को ही मान लिया. तभी एक कृष्ण बना बच्चा नीचे से पुकारता है अंकल नीचे आओ ना…मै अतीत से वापस लौट आया था. इतने साल हो गये आज अलग हुए, पता चला था कि तुम्हें बेटी हुई है. पर यह नहीं जानता कि तुम उसे अब राधा बनाते हो या कृष्ण बनाते हो. मैं तो आज भी इन बच्चों में तुम्हें और मुझे ढ़ूढ़ रहा हूं… फिर वहीं बात मेरे मन में आती है जब मैं तुमसे कहता था इस जन्माष्टमी मै तेरा कृष्ण बनूंगा, तुम मेरी राधा बन जाना…