Monday 23 October 2017

मोर बेटी संतोषी भूख से मइर गेलक, फिर धर्म आउर जमीन कर का काम, सरकार केकरो बने मोकेभरपेट खाना चाही, बदन में कपड़ा चाही आउर काम चाहि...

बेटी संतोषी की मौत के बाद चरिया अंदर से टूट चूकी थी, पर समय बीतने के साथ धीरे धीरे अकेले ही जिंदगी जीना सीख रही थी. अघन का महीना में सांझ जल्दी हो जाता है, तो बकरी चराकर जल्दी घर लौट आयी थी, शाम में भूख लगी थी जल्दी से चुल्हा जलाकर घर में रखे हुए मकई को भूंज रही थी, ठीक उसी समय शंकर घर में आया. घर में घुसने के बाद शंकर ने चरिया का हाल सामाचार पूछा और कहा कि सल सुबह रांची जाना है, सुबह तीन बजे तैयार हो जाना गाड़ी आएगा ले जाने के लिए. तो चरिया ने शंकर से पूछा की रांची क्यों जाना है, शंकर ने कुछ नहीं बताया बस कहा कि कोई रैली है  वहां जाना  है गांव का सबकोई  जा रहा है. इतना कहकर शंकर चला गया. 

जिसके बाद चरिया के मन में भी रांची जाने का ख्याल आया, लेकिन सबसे पहले उसके मन में ख्याल आया की उसकी बकरी को कौन चरा देगा, जिसके बाद चरिया फगुवा के पास चली गयी और उसे बकरी चराने के लिए बोलकर आ गयी, फगुआ ने चरिया को कहा कि कोई फायदा नहीं है रैली में जाकर अपना पैसा खर्चा होगा, और नेता लोग का किस्मत चमकेगा. पर चरिया कहां मानने वाली थी. कहते हैं ना इंसान जब अकेला होता है तो स्वच्छंद हो जाता है और सब कुछ जी लेना चाहता है, चरिया के ख्याल भी ऐसे हो गये थे. 

फगुवा के पास से चरिया जल्दी लौटकर आयी, रात में जल्दी से खाना बनाकर चरिया सोने के लिए आ गयी लेकिन आंखो में नींद कहां थी,उसके मन में तो रांची जाने का ख्याल हिलोरं मार रहा था, उसने सुना था रांची में उंची उंची बिल्डींगे हैं, चौड़े रास्ते हैं और कई बड़े अधिकारी और मंत्री रांची में रहते हैं, वहां जाकर वो अपने लिए फरियाद कर सकती है, इसी सोच मे ना जाने कब चरिया की आंख  लग गयी और सूबह मर्गे की बांग के साथ वो उठकर खेत से शौच करके आ गयी. तैयार होकर अपने पास कुछ पैसे रखे और रैली में जाने वाली बस में बैठ गयी. रांची पहुंचते ही चरिया यहां के आलीशान मकान और बड़े बड़े कॉंप्लेक्स देखकर चौंक गयी. गाड़ी मैदान से दूर खड़ा कर दिया गया. 


काफी देर धूप में पैदल चलने के बाद वो मोरहाबादी मैदान पहुंची तो देखा प्यास से गला तर करने के लिए पानी की भी व्यवस्था नहीं थी. खुद के पासे पैसे थे तो जाकर ठेले में समोसाखा लिया. जिसके बाद बैठकर पूरा भाषण सुनी. पूरा भाषण सुनने के बाद भी समझ में चरिया को  नहीं आया कि वो यहां किसलिए आयी थी. जिसके बाद चरिया जाकर बस में बैठ गय फिर घर चली गयी रात में यह सोचती रही आखिर उनकी बेटी के बारे में बात क्यों नही हुई... 

Wednesday 18 October 2017

साहेब मेरा आधार कार्ड तो जोड़ा हुआ नहीं है तो वोट कैसे देने दिए हमको....

पूस का महीना था, सुबह की खिली हुई धूप थी और चरिया के घर से आज सुबह की धुंआ निकल रहा था. बेटी सोमरी की मौत के तीन साल बीत चुके थे और फिर से चुनाव आ गया था. चरिया भी वोट देने की तैयारी में थी. कल ही बकरी चराते समय उसने फगुवा को बताया था कि उसे कंबल, साड़ी, चावल और पैसा मिला है. इसलिए वो वोट देने के लिए जायेगी. गांव के सरकारी स्कूल के पास ही उसका घर था, वोट का दिन था तो घर के बाहर स्कूल के पाल मेला लगा था, बंदूक धारी पुलिस और कई अफसर आये थे. अफसर इसलिए की बेटी की मौत के बाद चरिया लोगों को थोड़ा बहुत पहचानने लगी थी. शायद इसलिए चरिया के घर से आज सुबह ही धुआं निकल रहा था कि घर में चावल है जल्दी पका खाकर वोट देकर और बकरी चराने जायेगी. 

    पानी लाये कुआं में गयी थी तो बुधनी ने चरिया को बताया था कि नेता के लोग आये थे और घर में कुछ पैसा चावल और कपड़ा देकर गये हैं, चरिया को भी यह सब सामान मिला था, कंबल देकर लोग कह रहे थे की फूल छाप में बटन दबा देना, गैस चुल्हा मिलेगा, पेंशन का पैसा मिलेगा, घर मिलेगा, साड़ी देकर कह रहे थे की हांथ छाप दिखेगा उस बटन को दबा देना, बकरी चराने नहीं जाना पड़ेगा और गांव में काम मिल जायेगा और घर भी दिला देंगे , चावल और पैसा देकर कह रहे थे कि तीर धनुष छाप का बटन दबाना हमलोग तुम्हारा ख्याल रखेंगे, बाकी सब बाहरी है हमलोग तुम्हारा अपना है, चरिया उन की बातों को सुनकर समझ फैसला नहीं कर पा रही थी कि किसकों वोट दे. 

symbolic image
     पंद्रह दिन पहले से चरिया बकरी चराने के लिए मैदान के पास जा रही थी, मैदान में बहुत भीड़ हुआ था माइक लगा कर नेता लोग बोल रहा था गांव वाला का सब दुख दूर कर देंगे, उस समय एक पल के लिए चरिया के मन में भी ख्याल आया था कि जाकर पूछ ले कि मेरी सोमरी को वापस लो दोगे क्या? पर पुलिस के डर से वो अपना सवाल नहीं पूछ पायी. लेकिन आज चुनाव के दिन सुबह सुबह घर से धुआं निकल रहा था, और खुद नया कंबल ओढ़कर धूप में बैठकर चावल चुन रही थी. आज वो जल्दी उठी थी, रात में नया कंबल ओढ़कर अच्छे से सोयी थी, जानती थी की सुबह-सुबह स्कूल के पास भीड़ हो जायेगी तो चार बजे ही शौच होकर लौट आयी थी. थोड़ी देर बाद चरिया नहा कर और तैयार होकर नयी साड़ी पहनकर वोट देने के लिए स्कूल पहुंच गयी. 



     स्कूल के पास ही उसे फगुआ, छोटन, ननकू और शंकर सभी ने टोक-टोक कर अपने-अपने नेता को वोट के लिए कहा था, चरिया इसी उधेड़बुन में अपने नाम की पर्ची कटाकर वोट देने के लिए स्कूल के अंदर चली गयी, अपना पहचान पत्र दिखाया और वोट देने चली गयी अंदर इवीएम मशीन को देखकर उसके मन में एक ही सवाल था कि किसने मुझे क्या दिया है कि मै  बटन दबाऊ, इसी उधेड़बुन में चरिया ने सबसे नीचे वाला बटन दबाया और चूपचाप बाहर निकल गयी और बाहर बैठे बाबू से पूछा साहेब मेरा आधार कार्ड तो जोड़ा हुआ नहीं है तो वोट कैसे देने दिए हमको, पर आज मेरी बेटी नहीं है कोई नहीं मरेगा. शाम में चरिया नयी साड़ी पहनकर बकरी चराकर अपने घर लौट रही थी. 


Tuesday 17 October 2017

आधार कार्ड के चक्कर में मेरी जिंदगी का आधार छिन गया, मुझे राशन नहीं मिला और बेटी भात के लिए बिलखते हुए मर गयी




शादी का शोर था, डीजे की धुन बज रही थी, गोरे काले, क्रीम लगाये हुए चमचमाते चेहरे डीजे की रंगीन रोशनी में जगमग हो रहे थे. अच्छे-अच्छे पकवान बने थे, अपने-अपने पसंद से लोग खाना चुन-चुन कर खा रहे थे, पेट में भले ही उतना ना अंटे लेकिन प्लेट में जितना अंटे उतना खाना लेकर सभी खा रहे थे. कोई अच्छे से खा रहा था कोई अनमने ढंग से खा रहा था, कोई बच्चा पूरे पार्टी में घूम-घूम कर आइसक्रीम खा रहा था कोई अाधा प्लेट खाकर खाने को प्लेट सहित डस्ट बीन में डाल रहा था. 



उस पार्टी में ही एक बूढ़िया फटे पुराने साड़ी में लिपटी हुई ठंड से बचने का प्रयास करती हुई सभी प्लेट को एक-एक कर चुन रही थी और साफ कर रही थी. बचे हुए खाने को जैसे ही वह फेंकती थी कुत्तों को झुंड भौंकते हुए उस पर टूट पड़ता . एक ही जगह की दो तस्वीर थी एक तरफ मौज-मस्ती डीजे की धुन और अमीरी की चकाचौंध थी, दूसरी तरफ भोजन के लिए पेट भरने के लिए संघर्ष था. दोनो के बीच में चरिया अपना पेट भरने के लिए ठंड में ठिठूरते हुए ठंड में अपने फटी साड़ी से खुद को बचाते हुए ठंडे पानी से सभी प्लेट को साफ कर रही थी. प्लेट मांजते-माजंते चरिया अतित के उस पन्ने में चली गयी जहां भूख ने, भात ने उसकी एकमात्र बेटी को भी छीन लिया था. चरिया को याद आ रहा था  कि कैसे उसकी 11 साल  की बेटी  सोमरी भात मांग रही थी, और भात मांगते-मांगते सोमरी की आवाज मद्धिम हो गयी, फिर अचानक एक दिन बिना बताये ही हमेशा के लिए भूखे पेट सो गयी . 


आश्विन का महीना था, खेत में धान और मड़ुआ पके नहीं थे. घर में अनाज का दाना नहीं था, एक दुकान में चावल मिलता था पर सरकारी नियम कानून ने आधार कार्ड के छोटे से कागज के टुकड़े के लिए इतना पचड़ा किया कि दुकानदार चावल देने से मना कर दिया. गांव में एक बार बड़े लोग आये थे, गाड़ी में उनके लिए बड़ा स्टेज बना था, चरिया ने वहां बकरी चराते हुए सुना था कि स्कूल में खाना मिलता है तो बच्ची को व हां अच्छा खाना मिलेगा, पर जब सोमरी घर आकर बतायी तो मालूम चला कि बड़े लोग खाली बोलते हैं, पेट नहीं भरते हैं, सोमरी बतायी थी कि खाली चावल दाल और सब्जी मिलता है, अंडा मुर्गा, मीट मछली तो सूंघने भर के लिए मिलता है, पर फिर भी पेट भर रहा था, पर जब सोमरी की मौत हुई थी तब तो स्कूल भी बंद था, खाना कहां से मिलता.  

चरिया प्लेट धोते-धोते जाने कहां से कहां पहुंच गयी थी, उसे लग रहा था आज उसकी सोमरी जिंदा होती तो उसका भी ब्याह होता वो नयी साड़ी पहनती लेकिन नियती को यह कहां मंजूर था. चरिया को याद आ रहा था कि किस तरीके से पत्रकार और बड़े बड़े साहब उसके घर आ रहे थे और पूछताछ कर रहे थे, राज्य के मुखिया भी पचास हजार रुपया देने का एलान किये थे. और जिला के बड़ा साहेब बोले थे कि 24 घंटे के अंदर जांच करेंगे और कार्रवाई होगी. ठंड से ठिठूरती हुई चरिया की आंखों में पानी भर गया था, सोच रही थी भगवान तेरा कैसा न्याय है, भात-भात कहते मेरी सोमरी गहरी नींद में सो गयी और आज यहां पर भात को लोग फेंक रहा है. 

चरिया बैठे-बैठे सोच रही थी कि जिस रफ्तार से बाबुओं ने उस समय जांच किया था उस रफ्तार से अगर पहले काम किये होते तो आज उसकी  बेटी जिंदा होती, पर कुछ नहीं हुआ, पचास हजार रुपया का मुंह भी नहीं देखा और क्या हुआ पता भी नहीं चला. बस जब सोमरी की लाश को लोग ले जा रहे थे उस समय एक बड़ा गाड़ी जिसमे बड़ा सा टीवी लगा हुआ था वो बोल रहा था राज्य बहुत विकास कर रहा है और सभी को भरपेट खाने के लिए एक रुपये प्रति किलो के दर से चावल मिल रहा है. 

Monday 2 October 2017

भूखे पेट वास्ता तो रोटी है

सरकारी घोषणाओं की झड़ी से
पेट की क्षुधा शांती नहीं होती
भूखे पेट वास्ता तो रोटी है

सहानूभूति के शब्दों को नहीं खाये जाते हैं
पीठ पर थपथपी से प्यास नहीं बुझती
भूखे पेट का वास्ता तो रोटी है









घर में अन्न ना हो तो रोजा भी नहीं होता
शांत पड़े चुल्हे से नवरात्र भी नहीं होता
भूखे पेट का वास्ता तो रोटी से है.

चाहे आलिशान मकान दे दिजीये
चाहे बुलेट ट्रेन दे दिजीये
भू्खे पेट का वास्ता तो रोटी से है
 
बस यह व्यवस्था कर दो कि
भरपेट भोजन मिल जाए
कोई भूखा ना रहे
भू्ख का वास्ता तो रोटी तो है.