Tuesday 17 October 2017

आधार कार्ड के चक्कर में मेरी जिंदगी का आधार छिन गया, मुझे राशन नहीं मिला और बेटी भात के लिए बिलखते हुए मर गयी




शादी का शोर था, डीजे की धुन बज रही थी, गोरे काले, क्रीम लगाये हुए चमचमाते चेहरे डीजे की रंगीन रोशनी में जगमग हो रहे थे. अच्छे-अच्छे पकवान बने थे, अपने-अपने पसंद से लोग खाना चुन-चुन कर खा रहे थे, पेट में भले ही उतना ना अंटे लेकिन प्लेट में जितना अंटे उतना खाना लेकर सभी खा रहे थे. कोई अच्छे से खा रहा था कोई अनमने ढंग से खा रहा था, कोई बच्चा पूरे पार्टी में घूम-घूम कर आइसक्रीम खा रहा था कोई अाधा प्लेट खाकर खाने को प्लेट सहित डस्ट बीन में डाल रहा था. 



उस पार्टी में ही एक बूढ़िया फटे पुराने साड़ी में लिपटी हुई ठंड से बचने का प्रयास करती हुई सभी प्लेट को एक-एक कर चुन रही थी और साफ कर रही थी. बचे हुए खाने को जैसे ही वह फेंकती थी कुत्तों को झुंड भौंकते हुए उस पर टूट पड़ता . एक ही जगह की दो तस्वीर थी एक तरफ मौज-मस्ती डीजे की धुन और अमीरी की चकाचौंध थी, दूसरी तरफ भोजन के लिए पेट भरने के लिए संघर्ष था. दोनो के बीच में चरिया अपना पेट भरने के लिए ठंड में ठिठूरते हुए ठंड में अपने फटी साड़ी से खुद को बचाते हुए ठंडे पानी से सभी प्लेट को साफ कर रही थी. प्लेट मांजते-माजंते चरिया अतित के उस पन्ने में चली गयी जहां भूख ने, भात ने उसकी एकमात्र बेटी को भी छीन लिया था. चरिया को याद आ रहा था  कि कैसे उसकी 11 साल  की बेटी  सोमरी भात मांग रही थी, और भात मांगते-मांगते सोमरी की आवाज मद्धिम हो गयी, फिर अचानक एक दिन बिना बताये ही हमेशा के लिए भूखे पेट सो गयी . 


आश्विन का महीना था, खेत में धान और मड़ुआ पके नहीं थे. घर में अनाज का दाना नहीं था, एक दुकान में चावल मिलता था पर सरकारी नियम कानून ने आधार कार्ड के छोटे से कागज के टुकड़े के लिए इतना पचड़ा किया कि दुकानदार चावल देने से मना कर दिया. गांव में एक बार बड़े लोग आये थे, गाड़ी में उनके लिए बड़ा स्टेज बना था, चरिया ने वहां बकरी चराते हुए सुना था कि स्कूल में खाना मिलता है तो बच्ची को व हां अच्छा खाना मिलेगा, पर जब सोमरी घर आकर बतायी तो मालूम चला कि बड़े लोग खाली बोलते हैं, पेट नहीं भरते हैं, सोमरी बतायी थी कि खाली चावल दाल और सब्जी मिलता है, अंडा मुर्गा, मीट मछली तो सूंघने भर के लिए मिलता है, पर फिर भी पेट भर रहा था, पर जब सोमरी की मौत हुई थी तब तो स्कूल भी बंद था, खाना कहां से मिलता.  

चरिया प्लेट धोते-धोते जाने कहां से कहां पहुंच गयी थी, उसे लग रहा था आज उसकी सोमरी जिंदा होती तो उसका भी ब्याह होता वो नयी साड़ी पहनती लेकिन नियती को यह कहां मंजूर था. चरिया को याद आ रहा था कि किस तरीके से पत्रकार और बड़े बड़े साहब उसके घर आ रहे थे और पूछताछ कर रहे थे, राज्य के मुखिया भी पचास हजार रुपया देने का एलान किये थे. और जिला के बड़ा साहेब बोले थे कि 24 घंटे के अंदर जांच करेंगे और कार्रवाई होगी. ठंड से ठिठूरती हुई चरिया की आंखों में पानी भर गया था, सोच रही थी भगवान तेरा कैसा न्याय है, भात-भात कहते मेरी सोमरी गहरी नींद में सो गयी और आज यहां पर भात को लोग फेंक रहा है. 

चरिया बैठे-बैठे सोच रही थी कि जिस रफ्तार से बाबुओं ने उस समय जांच किया था उस रफ्तार से अगर पहले काम किये होते तो आज उसकी  बेटी जिंदा होती, पर कुछ नहीं हुआ, पचास हजार रुपया का मुंह भी नहीं देखा और क्या हुआ पता भी नहीं चला. बस जब सोमरी की लाश को लोग ले जा रहे थे उस समय एक बड़ा गाड़ी जिसमे बड़ा सा टीवी लगा हुआ था वो बोल रहा था राज्य बहुत विकास कर रहा है और सभी को भरपेट खाने के लिए एक रुपये प्रति किलो के दर से चावल मिल रहा है. 

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