Wednesday 18 October 2017

साहेब मेरा आधार कार्ड तो जोड़ा हुआ नहीं है तो वोट कैसे देने दिए हमको....

पूस का महीना था, सुबह की खिली हुई धूप थी और चरिया के घर से आज सुबह की धुंआ निकल रहा था. बेटी सोमरी की मौत के तीन साल बीत चुके थे और फिर से चुनाव आ गया था. चरिया भी वोट देने की तैयारी में थी. कल ही बकरी चराते समय उसने फगुवा को बताया था कि उसे कंबल, साड़ी, चावल और पैसा मिला है. इसलिए वो वोट देने के लिए जायेगी. गांव के सरकारी स्कूल के पास ही उसका घर था, वोट का दिन था तो घर के बाहर स्कूल के पाल मेला लगा था, बंदूक धारी पुलिस और कई अफसर आये थे. अफसर इसलिए की बेटी की मौत के बाद चरिया लोगों को थोड़ा बहुत पहचानने लगी थी. शायद इसलिए चरिया के घर से आज सुबह ही धुआं निकल रहा था कि घर में चावल है जल्दी पका खाकर वोट देकर और बकरी चराने जायेगी. 

    पानी लाये कुआं में गयी थी तो बुधनी ने चरिया को बताया था कि नेता के लोग आये थे और घर में कुछ पैसा चावल और कपड़ा देकर गये हैं, चरिया को भी यह सब सामान मिला था, कंबल देकर लोग कह रहे थे की फूल छाप में बटन दबा देना, गैस चुल्हा मिलेगा, पेंशन का पैसा मिलेगा, घर मिलेगा, साड़ी देकर कह रहे थे की हांथ छाप दिखेगा उस बटन को दबा देना, बकरी चराने नहीं जाना पड़ेगा और गांव में काम मिल जायेगा और घर भी दिला देंगे , चावल और पैसा देकर कह रहे थे कि तीर धनुष छाप का बटन दबाना हमलोग तुम्हारा ख्याल रखेंगे, बाकी सब बाहरी है हमलोग तुम्हारा अपना है, चरिया उन की बातों को सुनकर समझ फैसला नहीं कर पा रही थी कि किसकों वोट दे. 

symbolic image
     पंद्रह दिन पहले से चरिया बकरी चराने के लिए मैदान के पास जा रही थी, मैदान में बहुत भीड़ हुआ था माइक लगा कर नेता लोग बोल रहा था गांव वाला का सब दुख दूर कर देंगे, उस समय एक पल के लिए चरिया के मन में भी ख्याल आया था कि जाकर पूछ ले कि मेरी सोमरी को वापस लो दोगे क्या? पर पुलिस के डर से वो अपना सवाल नहीं पूछ पायी. लेकिन आज चुनाव के दिन सुबह सुबह घर से धुआं निकल रहा था, और खुद नया कंबल ओढ़कर धूप में बैठकर चावल चुन रही थी. आज वो जल्दी उठी थी, रात में नया कंबल ओढ़कर अच्छे से सोयी थी, जानती थी की सुबह-सुबह स्कूल के पास भीड़ हो जायेगी तो चार बजे ही शौच होकर लौट आयी थी. थोड़ी देर बाद चरिया नहा कर और तैयार होकर नयी साड़ी पहनकर वोट देने के लिए स्कूल पहुंच गयी. 



     स्कूल के पास ही उसे फगुआ, छोटन, ननकू और शंकर सभी ने टोक-टोक कर अपने-अपने नेता को वोट के लिए कहा था, चरिया इसी उधेड़बुन में अपने नाम की पर्ची कटाकर वोट देने के लिए स्कूल के अंदर चली गयी, अपना पहचान पत्र दिखाया और वोट देने चली गयी अंदर इवीएम मशीन को देखकर उसके मन में एक ही सवाल था कि किसने मुझे क्या दिया है कि मै  बटन दबाऊ, इसी उधेड़बुन में चरिया ने सबसे नीचे वाला बटन दबाया और चूपचाप बाहर निकल गयी और बाहर बैठे बाबू से पूछा साहेब मेरा आधार कार्ड तो जोड़ा हुआ नहीं है तो वोट कैसे देने दिए हमको, पर आज मेरी बेटी नहीं है कोई नहीं मरेगा. शाम में चरिया नयी साड़ी पहनकर बकरी चराकर अपने घर लौट रही थी. 


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