Monday 6 November 2017

पूर्वजों को अपने साथ-अपने पास रखने की अनोखी परंपरा, ताकि हमेशा आने वाली पीढी पूर्वजों को रखे याद और उन्हें मिलता रहे आशीर्वाद

stones at Lohajimi Village Torpa                 Photo: Pawan Singh Rathore   
आदिवासी समाज के अंदर कई तरह की परंपराये चलती है जिसके अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग मायने होते हैं. मै इस समाज के इतिहास के बार में तो ज्यादा जानकारी नहीं रखता हूं पर जो कुछ समाज में आदिकाल से चला आ रहा उसे अपने चश्मे से देखकर उसका विश्लेषण कर रहा हूं हो सकता है मैं गलत भी हो जाउं क्योंकि मैं आज जो भी लिख रहा हूं वो जानकारी मैने सिर्फ मैने स्थानीय लोगों से बातचीत करके हासिल की है. क्योंकि मुझे यहां पर अपने बुजूर्गों के प्रति पूर्वजों के प्रति भावनात्मक लगाव दिखा वो अमूमन हमारे कथित आधुनिक और मशीनी समाज से धीरे-धीरे गायब होता जा रहा है शायद इसलिए ओल्ड एज होम में भीड़ बढ़ती जा रही है. 

name in stone at Lohajimi Village                                                                      photo: Pawan Singh Rathore
रिपोर्टिंग के सिलसिले में मैं खूंटी जिला के तोरपा प्रखंड गया था और वहां के झटिंगटोली और लोहाजिमी गांवों में गया. दोनो गांवो के बीच की दूरी बीस किलोमीटर से अधिक है. तोरपा प्रखंड मुंडा आदिवासी बहुल इलाका है और सांस्कृतिक तौर पर काफी समृद्ध है. यह मै अपने नजरिये के हिसाब से लिख रहा हूं, हो सकता है आपकी राय मुझसे अलग हो. इन दोनो ही गांवों में मैने उचें-उचें पत्थर देखा जो कृत्रिम तौर पर गाड़े गये थे, कुछ पत्थरों में नाम भी अंकित थे, 

अमूमन ऐसे पत्थर पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्रों में रहते हैं जहां पर सविधान के मुताबिक पांचवी अुनसूची के आधार पर उन इलाकों को दी गयी विशेषाधिकार की जानकारी अंकित होती है, पर इन पत्थरों में नाम और तारीख लिखे हुए थे. पुछताछ के बाद ग्रामीणों ने बताया कि घर के अगर बुजूर्ग की मौत होती है तो उसे दफना दिया जाता है और फिर एक साल बाद दफनाएं गए जगह से हड्डी को लाकर घर के पास ही गाड़ दिया जाता है और उसके उपर पत्थर गाड़ दिया जाता है. 

ग्रामीणों ने बताया कि इस दौरान उस घर में शादी जैसा माहौल रहता है और पूरे रीति रिवाज से सारे काम होते हैं. इतना कुछ कार्यक्रम होते है लेकिन इसके पीछे एक बात तो तय है जो सामने आती है वो है सम्मान, इस प्रक्रिया से मुझे यह बात समझ में आयी की समाज के लोग अपने बुजूर्गो को हमेशा अपने पास रखना चाहते हैं. उनका कहना है कि ऐसा करने से वो हमेशा हमारे सामने रहते है साथ ही हमारे आने वाली पीढ़ियां भी उन्हें जान पाती है और कई पुश्तों तक हमारी पहचान बनी रहती है. यह प्रेम सिर्फ इसी समाज में देखने के लिए मिलता है, इस इलाके के गांवों में हर घर के बाहर आपको ऐसे पत्थर दिख जायेंगे. 

Sight of Starting of Saranda forest  Photo: Pawan Singh Rathore
प्राकृतिक तौर पर कुदरत ने इस इलाके को अतुलनीय खूबसुरती दी है. उंचे-उचें पहाड़ है इसके और सांरडा के घने जंगलो की शुरुआत है. फिजाओं में खामोशी है और अदभूत संस्कृति की पहचान के साथ माटी की खुशबू है. गांवो तक जाने के लिए सड़के हैं. फटका पंचायत का लोहजिमी गांव खूटी और पश्चिमी सिंहभूम के बीच का सीमावर्ती गांव है, गांव  के बाद  से पहाड़ और सारंडा के घने जंगलो की शुरुआत होती. कभी यहां के फिजाओं में बंदूको का शोर था लेकिन अब धीरे-धीरे हालात काबू में आ रहे हैं. कई ऐसी कहानीयां है जिन्हे देखने की और समझने की जरुरत है. 

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