Friday 10 November 2017

जानती हो हमारे बीच एक ऐसा रिश्ता था, जिसे हम चाहकर भी कोई नाम दे नहीं सकते थे...जो हमे दिखाई नही देती थी या हम देखना नहीं चाहते थे


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पता है आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है, जानता हूं तुम यहां नहीं हो मेरे साथ नहीं हो, मेरे शहर से इतनी दूर हो कि शायद मेरी याद को वहां पहुंचने में कुछ घंटे का वक्त लग जाये. पर वो कुछ घंटे कई सदियों के बराबर होंगे, कैसे यकीन दिलाउं आज कि तुम्हारे बिना हमेशा अधूरा ही रहूंगा, तुम्हारे जाने के बाद ऑफिस में अधिक समय बीताता हूं, देर रात तक ऑफिस में बैठा रहता हूं, कोशिश करता हूं की शाम में ऑफिस में ही किसी कंंप्यूटर के आगे टक-टक करता रहूं भले ही कोई काम नहीं हो पर जबरदस्ती उस शाम से दूर भागने के लिए मैं यहीं बैठा रहता हूं, इसलिये शायद अब दोस्त भी साथ छोड़ दे रहे हैं, शाम में दफ्तर से निकल कर मेरे दोस्तों के साथ वक्त बीताना तुम्हे अच्छा नहीं लगता था, पता है मैने वो छोड़ दिया है. सच कहूं तो डर लगता है अब बाहर जाने में, क्या करूं काम के सिलसिले में हमेशा शहरों की शोर से दूर गांवों में जाता हूं , 

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 जानती हो लौटते वक्त कहीं सुनसान सड़क के किनारे बाइक खड़ा करके घंटों अकेले में तुमसे बात करता हूं. शाम में पहाड़ों के पीछे डूबता हुआ सूरज मुझे तुम्हारे आगोश में ले जाता है. उसका सुर्ख लाल रंग मेरे अंदर कई तरह के रंग भर देता है, जिसमे प्यार का रंग और गहरा हो जाता है. दिसंबर का आखिरी सप्ताह है, ठंड अपने पूरे शबाब पर है, लेकिन जब भी रात होती है यकीन मानो तुम्हारे साथ बीताये गये हसीन लम्हों की याद इतनी जोर से दस्तक देती है कि सिरहाने से नींद उड़ जाती है. आधी रात के बाद भी घंटो तक छत पर जाकर चांद को देखता रहता हूं. 

बढ़ती उर्जा की भूख को मिटाने के लिए सरकार ने इस इलाके की खूबसूरती को मिटाने की परियोजना तैयार कर दी थी  

जानते हो उस वक्त का सुकून मुझे तुम्हारे पास होने का एहसास देता है. याद है उन दिनों पर चांद को देखकर अपने प्यार का इजहार किया करते हैं क्या तुम अब भी चांद को देखते हो या फिर उस शहर की चकाचौंध रोशनी में चांद कही छिप जाता है, हो सकता है आसमान के धूंध में तुम्हे चांद तो नहीं दिखता होगा, लेकिन यकीन से कह सकता हूं तुम चांद को देखने की कोशिश जरुर करती होगी. तुम अक्सर कहती थी ना जो होता है अच्छे के लिए होता है, 

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सच बताउं आज तक समझ में नहीं आया कि आखिर अच्छा क्या हुआ, सबकुछ तो था हमारे बीच, जानती हो हमारे बीच एक ऐसा रिश्ता था, जिसे हम चाहकर भी कोई नाम दे नहीं सकते थे, हम साथ-साथ तो थे लेकिन फिर भी एक दूरी थी, जो हमे दिखाई नही देती थी या हम देखना नहीं चाहते थे. बस उस रिश्ते की मौज में यूंं ही नादान परिदों की तरह हम उड़ रहे थे, कभी मैं आगे निकल रहा था कभी तुम आगे निकल रही थी. साथ उड़ते हुए भी साथ में नहीं उड रहे थे. 

तुम्हे जमाने का डर था और मुझे तुम्हे खोने का डर, आज मैं एक बात कहूं तुम्हारे जाने के लगभग 13 महीने के बाद मैंने जीना सीख लिया है, पर अभी भी कुछ नहीं बदला है, हां तुम्हारी बेटी बड़ी हो गयी होगी, पर वो तस्वीर अभी भी याद में ताजा है जब तुम आंख बंद किये सिर पर दुपट्टा लेकर मंदिर में पूजा कर रही थी, मै बाहर था और एक कार की रोशनी तुम्हारे चेहरे पर पड़ रही थी, सच बताऊं मेरी पूजा तो वही थी, जो मैं देख रहा था.....

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