कोईल कारो परियोजना के विरोध स्थल की जन्मस्थली, जब विरोध कर रहे लोगों पर बरसायी गयी थी गोलियां, आठ ग्रामीण हुए थे शहीद
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एक
फरवरी 2001 तोरपा प्रखंड के इतिहास में हमेशा याद रखा जायेगा जब कोयल कारो
पनबिजली परियोजना का विरोध कर रहे आदिवासी ग्रामीणों पर पुलिस ने गोलियां
बरसायी थी और आठ ग्रामीण शहीद हो गये थे. यह विरोध कोयलकारो जनसंगठन की
अगुवाई में किया गया था, ग्रामीण एकजुट होकर अपनी जल जगंल और जमीन बचाने का
विरोध कर रहे थे. विरासत में मिली अपनी दमदार और अदभूत् सांस्कृतिक पहचान
को बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे.
तोरपा प्रखंड के लोहाजिमी, तपकरा
के आसपास
का इलाका जिसे प्रकृति ने असीम सुंदरता दी है. उंचे पहाड़ है घने जंगल है
और कल-कल बहते झरने है, लेकिन बढ़ती उर्जा की भूख को मिटाने के लिए सरकार
ने इस इलाके की खूबसूरती को मिटाने की परियोजना तैयार कर दी थी. शायद इसे
इलाके के लोगों का दुर्भाग्य ही कहेंगे क्योंकि कुदरत ने जो इन्हें वरदान
के रुप में दिया है वहीं इनके लिए अभिशाप हो गया है. तभी तो विरोध करने की
नौबत आ गयी थी.
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दरअसल कोयल कारो पनबिजली परियोजना की शुरुआत 1958 में बिहार
सरकार के द्वारा की गयी थी, उस समय यह एशिया की दूसरी सबसे बड़ी पनबिजली
परियोजना मानी जाती थी. इसके बाद भारत सरकार के उपक्रम एनएचपीसी को निर्माण
की जिम्मेवारी सौंपी गयी. 1881 में एनएचपीसी ने परियोजना को लेकर काम शुरु
किया. लेकिन बाद में विस्थापन के डर से कोयलकारो जनसंगठन के बैनर तले
ग्रामीणों नें विरोध शुरु किया, विरोध लागातार जारी था लेकिन इसे दरकिनार
करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंम्हा राव ने परियोजना के
शिलान्यास की घोषणा कर दी.
इस घोषणा के साथ ही परियोजना विरोध संगठनो सहित
झारखंड पार्टी और कई राजनीतिक दलों नें आंदोलन और तेज कर दिया और डूब
क्षेत्र में बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया. जिसके बाद एक
फरवरी को विरोध के दौरान गोलियां चली और आठ ग्रामीण शहीद हो गये थे. आज भी
एनएचपीसी के क्वार्टर तोरपा में बने हुए हैं जिसपर स्थानीय लोग रह रहे हैं.
ग्रामीणों के विरोध को देखते हुए सरकार ने इस परियोजना से अपने हाथ खड़े
कर लिये. लेकिन अब भी इस परियोजना को बंद नहीं माना जा सकता है.
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जिन सवालों
को लेकर परियोजना को बंद कराया गया था वो सवाल अब भी अनसुलझे हैं. पर्यावरण
कि जिन चिंताओं को लेकर इस पर सवाल खड़े हुए थे आज भी उनका जवाब नहीं मिल
पाया है. जिसके कारण सरकार का यह कदम कई सवाल खड़े करता है. पर्यावरण के
लिहाज से देखा जाये तो यह काफी खतरनाक साबित हो सकता है. क्योंकि इसके
निर्माण से कई गांव डूब जायेेंगे. लाखो हेक्टेयर के वनक्षेत्र बर्बाद हो
जायेेंगे. लाखों की संख्या में ग्रामीण विस्थापित होगे, यह वो ग्रामीण है
जिनकी दिनचर्या ही जंगल से शुरु होती है और जंगलों से वो बेतहाशा प्यार
करते हैं.
पूर्वजों को अपने साथ-अपने पास रखने की अनोखी परंपरा, ताकि हमेशा आने वाली पीढी पूर्वजों को रखे याद और उन्हें मिलता रहे आशीर्वाद
पूर्वजों को अपने साथ-अपने पास रखने की अनोखी परंपरा, ताकि हमेशा आने वाली पीढी पूर्वजों को रखे याद और उन्हें मिलता रहे आशीर्वाद
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