Wednesday 29 August 2018

आज फिर रास्ता काट गई...यार आज तक तुम्हारे काटने-पीटने की आदत नहीं गयी ना....




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आज फिर रास्ता काट गई...यार आज तक तुम्हारे काटने-पीटने की आदत नहीं गयी ना, स्कूल में दांत से नाखून काटते थे और आज मेरा रास्ता 26वीं बार काट रहे हो. सच बोल रहा हूं अब तो सुधर जाओ एक बच्चे की मां बन गयी हो. आज ही देखा तुम्हारे बच्चे को, पूरा खड़ूस अपने बाप पर गया है नालायक. पर आज सच में बड़ा गुस्सा आया, जी तो किया कि ब्रेक ही ना मांरू, सीधा जाकर तुम्हे मार दूं, और तुम्हारी वही बांये हाथ की सबसे बड़़ी से छोटी उंगली टूट जाये.




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कसम से बड़ी तसल्ली होती, इंगेजमेंट के बाद बड़ी नाच-नाच कर उस अंगुली में पहनी अंगूठी दिखा रहे थे. चिल्ला-चिल्ला कर उसका दाम बता रहे थे, अपने होने वाले खड़ूस पति का नाम बता रहे थे. सच बताऊं तो बड़ा गुस्सा आया था उस दिन. यार एक बताओ मैं जितनी बार तुमसे दूर जाने की कोशिश करता हूं, उतनी ही हर बार मेरे सामने आ जाते हो रास्ता काटने के लिए कहां से टपक पड़ते हो. पिछले महीने की 28 तारीख को बुधवार का दिन था, चिकन खाने का जी कर रहा था, पैसे कम थे तो सड़क  के किनारे ठेले पर चिकन पराठा खा रहा था. जैसे ही पहला निवाला मुंह में डाला तुम सामने हाजिर. यार तुमने क्या मेरे अंदर कोई ट्रैकिंग डिवाइस डाल कर रखा है जो हर जगह पहुंच जाते हो. जब मैं शहर के सबसे बड़े मॉल में होता हूंतब तो तुम नहीं आते हो, लेकिन जब भी फूटपाथ से कुछ खरीदने जाऊं तुम टपक जाते हो. 

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 सच में आज जब तुम  मेरे बाइक के सामने आये तो लगा मार दूं, लेकिन मैने ब्रेक मार दी जानते हो क्यों, क्योंकि मेरे अंदर आज भी तुम्हारे लिए वही अहसास है, जो पहले थी. तुम मेरे बहुत अच्छे दोस्त थे, पर मैं तुमसे कभी कह नहीं पाया. पर सच में अब मेरे सामने कभी मत आना उन घावों को कुरेदने के लिए.

Thursday 16 August 2018

हार नहीं मानूंगा रार नयी ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं, गीत नया गाता हूं. अटल विचार, अटल व्यवहार, अटल व्यक्तित्व को अटल श्रद्धांजलि.



हार नहीं मानूंगा रार नयी ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं, गीत नया गाता हूं. जन-मानस  को झंकृत कर देने वाली यह आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गयी, अभी तो आजादी के जश्न का रंग भी नहीं उतरा था किसे मालूम था की 16 अगस्त ऐसा मनहूस खबर लेकर आयेगी. भारत रत्न, प्रखर कवि, शानदार राजनेता और एक बेहतरीन नेतृत्व क्षमता रखने वाले देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का निधन हो गया. उनका जन्म 25 दिसंबर 1924 में ग्वालियर में हुआ था. उन्होंने तीन बार बतौर प्रधानमंत्री देश का प्रतिनिधित्व किया था. 66 दिनों तक एम्स में जिंदगी की जंग लड़ने के बाद आखिर कार वो जिंदगी की जंग हार गये. उनके किडनी और मूत्राशय में इंफेक्शन था. वो लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर चल रहे थे.



उनका राजनीतिक जीवन काफी लंबा रहा लेकिन कोई भी विवाद उनसे नहीं जुड़ा. वे पूर्व पत्रकार और मशहूर कवि थे. भारतीय जनसंघ की स्थापना में अटल बिहारी बाजपेयी की भूमिका सराहनीय रही. अटल बिहारी बाजपेयी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया. चार दशक तक राजनीति में सक्रिय रहे. 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष रहे. 1996 में पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने. उनके भाषण में लोगों को बांधने की अदभूत क्षमता थी. राष्ट्रीय स्वयं सेवक की विचारधारा में पले- बढ़े अटल जी राजनीति में उदारवाद और समता एवं समानता के समर्थक माने जाते थे. उन्होंने अपनी विचारधारा को कभी कीलों से नहीं बांधा.  

उन्होंने राजनीति को दलगत और स्वार्थ की वैचारिकता से अलग हट कर अपनाया और उसको जिया. राजनीतिक जीवन के उतार चढ़ाव में उन्होंने आलोचनाओं के बाद भी अपने को संयमित रखा. राजनीति में धुर विरोधी भी उनकी विचारधारा और कार्यशैली के कायल रहे. पोखरण जैसा आणविक परीक्षण कर दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के साथ दूसरे मुल्कों को भारत की शक्ति का अहसास कराया. कविताओं को लेकर उन्होंने कहा था कि मेरी कविता जंग का एलान है. राजनीतिक सेवा का व्रत लेने के कारण वे आजीवन कुंवारे रहे. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया था. अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी राजनीतिक कुशलता से भाजपा को देश में शीर्ष राजनीतिक सम्मान दिलाया. दो दर्जन से अधिक राजनीतिक दलों को मिलाकर उन्होंने राजग बनाया जिसकी सरकार में 80 से अधिक मंत्री थे. जिसे जम्बो मंत्रीमंडल भी कहा गया. इस सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. 


अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में कभी भी आक्रमकता के पोषक नहीं थे. वैचारिकता को उन्होंने हमेशा तवज्जो दिया. पत्रकारिता ही उनके राजनैतिक जीवन की आधारशिला बनी. उन्होंने संघ के मुखपत्र पांचजन्य, राष्ट्रधर्म और वीर अर्जुन जैसे अखबारों का संपादन कियाण. 1957 में देश की संसद में जनसंघ के सिर्फ चार सदस्य थे जिसमें एक अटल बिहारी वाजपेयी भी थे. संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण देने वाले अटलजी पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे. उन्होंने सबसे पहले 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. बाद में 1957 में गोंडा की बलरामपुर सीट से जनसंघ उम्मीदवार के रूप में जीत कर लोकसभा पहुंचे. 

इंदिरा गांधी के खिलाफ जब विपक्ष एक हुआ और बाद में जब देश में मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो अटल जी को विदेशमंत्री बनाया गया. इस दौरान उन्होंने अपनी राजनीतिक कुशलता की छाप छोड़ी और विदेश नीति को बुलंदियों पर पहुंचाया. बाद में 1980 में जनता पार्टी से नाराज होकर पार्टी का दामन छोड़ दिया इसके बाद बनी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में वह एक थे. उसी साल उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी. इसके बाद 1986 तक उन्होंने भाजपा अध्यक्ष पद संभाला. उन्होंने इंदिरा गांधी के कुछ कार्यों की तब सराहना की थी, जब संघ उनकी विचारधारा का विरोध कर रहा था. कहा जाता है कि संसद में इंदिरा गांधी को दुर्गा की उपाधि उन्हीं की तरफ से दी गई. 

अटल हमेशा से समाज में समानता के पोषक रहे. अटल जी ने लालबहादुर शास्त्री जी की तरफ से दिए गए नारे जय जवान जय किसान में अलग से जय विज्ञान भी जोड़ा. देश की सामरिक सुरक्षा पर उन्हें समझौता गवारा नहीं था. वैश्विक चुनौतियों के बाद भी राजस्थान के पोखरण में 1998 में परमाणु परीक्षण किया. देश को परमाणु शक्ति से लैस करने वाले वो महान व्यक्तित्व अब हमारे बीच नहीं रहे. यह देश अटल जी को हमेशा याद रखेगा. उन्हें विन्रम श्रद्धांजलि, आप हमारे दिल में रहेंगे. अलविदा अटल जी. 






Monday 13 August 2018

नीला वाला वो फूल नीलकंठ है, जो शिवजी को बहुत पसंद है, याद है तुमने ही मुझे पहली बार बताया था....


सावन का महीना था, सुबह से ही बारिश हो रही थी. पता नहीं क्यों आज बहुत दिनों बाद सोचा कि मंदिर हो आंऊ, वैसे भी भगवान से रिश्ता टूटे हुए कई बरस  बीत चूके थे. पर आज मन हुआ कि मंदिर जाकर भगवान को इस जिंदगी के लिए शुक्रिया बोल कर आंऊ. थोड़ी बारिश कम हुई तो बिना छाता लिए ही घर से मंदिर के लिए निकल गया. सोचा उस पहाड़ी वाली शिवजी के मंदिर जांऊ, जहां आखिरी बार तुमने मुझे अलविदा कहा था. 


आज कई बरस बाद उस मंदिर की सीढ़ियां चढ़ रहा था, पर आज मन हल्का था, सीढ़ी चढ़ते हुए एक- एक पड़ाव पार कर रहा था. जैसे-जैसे सीढ़ियां चढ़ता जा रहा था, आंखों के सामने से वो तुम्हारे साथ बीताये  गये आखिरी पल सिनेमा स्क्रिन की तरह नाच रहे थे. बारिश से सीढ़ियां भी गीली हो रही थी और मेरे अंदर की बारिश से मैं भी गीला हो रहा था, आधी सीढ़ियां चढ़ जाने के बाद तो मुझे लगा जैसे मैं यह क्या कर रहां हूं, मुझे वापस चले जाना चाहिए, लेकिन मन के अंदर से ही आवाज आयी की आखिर कब तक भागोगे खुद से सामना करो इस सच का कि जिसके लिए तुम सबकुछ छोड़ चुके हो वो अपनी जिंदगी में सबकुछ हासिल कर रही है. उसने तुम्हारे लिए क्या छोड़ा जो तुम उसके  लिए छोड़ रहे हो, डरे हुए मेरे मन ने धीरे से जवाब दिया, प्यार भी तो मैने ही किया था. इस उधेड़बुन में कब मंदिर की सीढ़ियां चढ़कर मुख्य मंदिर में पहुंच गया पता ही नहीं चला, शिवलिंग पूरा नीले पीले लाल और सफेद फूलों  और बेलपत्र से  ढंका हुआ था. नीला वाला वो फूल नीलकंठ है, जो शिवजी को बहुत पसंद है, याद है तुमने मुझे पहली बार बताया था 


मैं पूजा करने लगा, ऐसा लग रहा था मेरे मन का गुस्सा फूट कर बाहर निकलने वाला है, और भगवान मुझे सांत्वना दे रहे हैं कि जो हुआ सो हुआ अब आगे बढ़ जाओ, पर कैसे बढ़ूं, इस मंदिर की सीढ़ियां भी तो मैने पहली बार उसके साथ ही पार की थी. मैं अगरबत्ती जलाने लगा, मुझे याद आया कि हर बार अगरबत्ती मैं पकड़ता था और माचिस तुम जलाते थे, पर आज मैं अकेला था. पूजा करने के बाद मंदिर के नीचे गया जहां पर नारियल फोड़ने के लिए स्थान बना आ था, तुम मुझे अक्सर कहती थी कि नारियल एक बार फोड़ना चाहिए, मैने एक बार में नारियल फोड़ा. आज पहली बार मैने भगवान से पूजा में तुम्हें नहीं मांगा. पूजा करने के बाद मैं सीढ़ियों से नीचे आ रहा था.  मैं उतरते हुए उस मोड़ पर पहुंचा जहां से हमलोग अलग हो गये थे, मैं उस मोड़ पर पहुंचा तो मेरी धड़कने अचानक तेज हो गयी, ये वहीं अहसास था जब तुम सामने होती थी, तो क्या आज फिर तुम आस-पास  हो, आगे बढ़ा तो देखा सच में तुम आ रही थी. सर पर दुपट्टा और हाथों में पूजा की टोकरी, कितने बरस बीत गये थे आज तुमको देखा, तुम उतनी ही सुंदर लग रहे थे. हां बीतते हुए वक्त ने तुम्हारे बालों और चेहरे में अपनी छाप छोड़ दी थी. मैं तुम्हें देख ही रहा था कि तुम नजर झुकाये मेरे सामने से गुजर गये तुमने तो मुझे देखा भी नहीं, क्या इतना बदल गये थे तुम, अपनी जिंदगी में आगे बढ़ते हुए तुम सीढ़ियों से उपर जा रहे थे, और मैं वहीं पर खड़ा तुम्हें देख रहा था. 


तुम्हारे इस तरह चले जाने से मेरे पैर जड़ हो गये थे लेकिन पता नहीं अचानक मेरे पैर में कहां से जान आ गयी और मैं बेतहासा सीढ़ियों से उपर भागा, मुझे लग रहा था मैं तुम्हें रोक कर पूंछु की इतने साल तुमने क्या किया, क्या एक बार भी तुम्हें मेरी याद नहीं आयी. तबतक हम दोनों उसी शिवलिंग के सामने थे. हाथ जोड़कर आंखे बंद किये पता नहीं क्या मांग रहे थे. तुम्हें ऐसे देखकर हमेशा मैं कहता था कि तुम कितनी सुंदर दिख रही हो, क्या तुम आज वही सुनने की कोशिश कर रहे थे. माफ करना लेकिन आज मैं नहीं कह सकता था, जमाने और अपने ही प्यार की कसम ने मुझे रोक रखा था, और कहता भी तो कैसे तुम्हारे ठीक बगल में तुम्हारे पति तम्हारे बच्चे को गोद में लिए बता रहे थे, यह नीला फूल नीलकंठ है, यह भगवान शिव को बहुत पसंद है. उसके बाद तुम्हारे पति ने अगरबत्ती पकड़ा और तुमने माचिस से अगरबत्ती जलायी. मैं तो अकेले अगरबत्ती जलाना सीख गया, पर तुम आज तक नहीं सीख पाये. अपने पति में तुमने मेरा अक्स तो देख लिया लेकिन मैं किसी में तुम्हें नहीं देख पाया. 

फिर मैं मंदिर से सीढ़ियां उतरने लगा, मुझे यह यकीन हो गया था कि वाकई अपनी जिंदगी में तुम आगे बढ़ गये हो. पर मैं उसी मोड़ जाकर रुक गया, कुछ देर बाद तुम उसी जगह पर थे, उसी  बेंच पर उसी जगह बैठकर ऊंचाई से नीचे देख रहे थे. मैंने नजर बचाकर तम्हें देखा, तुम अकेले थे, और तुम्हारें आखों के रास्ते तुम्हारा सब्र गालों पर उतर रहा था, तुम उसे छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे. धीरे-धीरे बारिश बढ़ रही थी, और मैं सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था...





Friday 10 August 2018

जिनका बचपन पांच इंच के स्मार्टफोन और 32 इंच की एलइडी टीवी के साथ बीत रहा है वो कैसे होंगे...

कहां भागे जा रहे हो ? थोड़ा रुको, संभलों, नहीं अभी समय नहीं है. अभी समय नहीं है का तात्पर्य क्या है, कि हमे इतने रफ्तार में आगे बढ़े, आगे जाये की सब कुछ पीछे छूट जाये, हमें गिरने का डर नहीं हो, गिर कर चोट लगने का डर नहीं हो, पर वाकई में देखने से लगता है डर तो नहीं है. अंधी दौड़ में सब कुछ पीछे छोड़ते हुए, ठीक उसी तरह जैसे बम फूटने के बाद धुएं का गुब्बार क्षण भर में गायब हो जाता है.  

आज इंसान भी वैसे ही गायब होता जा रहा है. किसी को किसी के खोज खबर लेने की फुर्सत नहीं है. हम सिर्फ और सिर्फ खुद में केंन्द्रित होते जा रहे हैं. आत्ममुग्धता अच्छी बात है, लेकिन यह उतनी ही बुरी बात है अगर सिर्फ खुद  के लिए सोचा जाये. जिंदगी में भागदौड़ अच्छी बात है, आगे बढ़ने की होड़ अच्छी बात है. यह सच है कि जीवन बदला है, जीने का तरीका बदला है, पर बदलते जीवन में हम अपने पौराणिक परंमपराओ की बलि चढ़ा दे यह तो पूरी तरह अनैतिक है. 


अब छोटे बच्चों में अपना बचपन नहीं दिखाई देता है. ना वो बचपना दिखता है, ना वो अल्हड़पन दिखता है. कहां खो गये सब, कहीं ऐसा तो नहीं कि हमने अपने बचपन को जी लिया और उसकी लिखावट को हमेशा के लिए मिटा दिया ताकि कोई उसे पढ़ नहीं सके. या फिर हम वो माता-पिता नहीं बन पा रहे हैं, जैसे हमारे है, या हमारे माता-पिता वो दादा-दादी, नाना, नानी नहीं बने पा रहे हैं जैसे हमारे थे. यह सोचने वाली बात है कि हमारी पीढ़ी में हमने जो सीखा वो अपने बाद की पीढ़ी का बता नही पाये तो हमारे बाद वाली पीढ़ी क्या बता पायेगी. यह सच है. 



हमारा बचपन घर से ज्यादा स्कूल, खेल का मैदान, खेत खलिहान में बीता तब हम ऐसे हो गये हैं, जरा सोचिये कि जिनका बचपन पांच इंच के स्मार्टफोन और 32 इंच की एलइडी टीवी के साथ बीत रहा है वो कैसे होंगे. माना आगे बढ़ना है,लेकिन इतने आगे मत बढ़ जाइए की आप अकेले हो जाये और फिर सब कुछ हासिल होने के बाद भी कुछ ना हो.