हार नहीं मानूंगा रार नयी ठानूंगा, काल के
कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं, गीत नया गाता हूं. जन-मानस को झंकृत कर देने वाली यह आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गयी, अभी तो आजादी के जश्न का रंग भी नहीं उतरा था किसे मालूम था की 16 अगस्त ऐसा
मनहूस खबर लेकर आयेगी. भारत रत्न, प्रखर कवि, शानदार राजनेता और
एक बेहतरीन नेतृत्व क्षमता रखने वाले देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी
बाजपेयी का निधन हो गया. उनका जन्म 25 दिसंबर 1924 में ग्वालियर में हुआ
था. उन्होंने तीन बार बतौर प्रधानमंत्री देश का प्रतिनिधित्व किया था. 66
दिनों तक एम्स में जिंदगी की जंग लड़ने के बाद आखिर कार वो जिंदगी की जंग
हार गये. उनके किडनी और मूत्राशय में इंफेक्शन था. वो लाइफ सपोर्ट सिस्टम
पर चल रहे थे.
उन्होंने राजनीति को
दलगत और स्वार्थ की वैचारिकता से अलग हट कर अपनाया और उसको जिया. राजनीतिक
जीवन के उतार चढ़ाव में उन्होंने आलोचनाओं के बाद भी अपने को संयमित रखा.
राजनीति में धुर विरोधी भी उनकी विचारधारा और कार्यशैली के कायल रहे. पोखरण
जैसा आणविक परीक्षण कर दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के साथ दूसरे
मुल्कों को भारत की शक्ति का अहसास कराया. कविताओं को लेकर उन्होंने कहा था
कि मेरी कविता जंग का एलान है. राजनीतिक सेवा का व्रत लेने के कारण वे
आजीवन कुंवारे रहे. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए आजीवन
अविवाहित रहने का निर्णय लिया था. अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी राजनीतिक
कुशलता से भाजपा को देश में शीर्ष राजनीतिक सम्मान दिलाया. दो दर्जन से
अधिक राजनीतिक दलों को मिलाकर उन्होंने राजग बनाया जिसकी सरकार में 80 से
अधिक मंत्री थे. जिसे जम्बो मंत्रीमंडल भी कहा गया. इस सरकार ने पांच साल
का कार्यकाल पूरा किया.
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अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में कभी भी आक्रमकता के
पोषक नहीं थे. वैचारिकता को उन्होंने हमेशा तवज्जो दिया. पत्रकारिता ही
उनके राजनैतिक जीवन की आधारशिला बनी. उन्होंने संघ के मुखपत्र पांचजन्य,
राष्ट्रधर्म और वीर अर्जुन जैसे अखबारों का संपादन कियाण. 1957 में देश की
संसद में जनसंघ के सिर्फ चार सदस्य थे जिसमें एक अटल बिहारी वाजपेयी भी थे.
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण
देने वाले अटलजी पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे. उन्होंने सबसे पहले 1955 में
पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. बाद
में 1957 में गोंडा की बलरामपुर सीट से जनसंघ उम्मीदवार के रूप में जीत कर
लोकसभा पहुंचे.
इंदिरा गांधी के खिलाफ जब विपक्ष एक हुआ और बाद में जब देश
में मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो अटल जी को विदेशमंत्री बनाया गया. इस
दौरान उन्होंने अपनी राजनीतिक कुशलता की छाप छोड़ी और विदेश नीति को
बुलंदियों पर पहुंचाया. बाद में 1980 में जनता पार्टी से नाराज होकर पार्टी
का दामन छोड़ दिया इसके बाद बनी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में
वह एक थे. उसी साल उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कमान सौंपी
गयी. इसके बाद 1986 तक उन्होंने भाजपा अध्यक्ष पद संभाला. उन्होंने इंदिरा
गांधी के कुछ कार्यों की तब सराहना की थी, जब संघ उनकी विचारधारा का विरोध
कर रहा था. कहा जाता है कि संसद में इंदिरा गांधी को दुर्गा की उपाधि
उन्हीं की तरफ से दी गई.
अटल हमेशा से समाज में समानता के पोषक रहे. अटल जी
ने लालबहादुर शास्त्री जी की तरफ से दिए गए नारे जय जवान जय किसान में अलग
से जय विज्ञान भी जोड़ा. देश की सामरिक सुरक्षा पर उन्हें समझौता गवारा
नहीं था. वैश्विक चुनौतियों के बाद भी राजस्थान के पोखरण में 1998 में
परमाणु परीक्षण किया. देश को परमाणु शक्ति से लैस करने वाले वो महान व्यक्तित्व अब हमारे बीच नहीं रहे. यह देश अटल जी को हमेशा याद रखेगा. उन्हें विन्रम श्रद्धांजलि, आप हमारे दिल में रहेंगे. अलविदा अटल जी.
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