सावन का महीना था, सुबह से ही बारिश हो रही थी. पता नहीं क्यों आज
बहुत दिनों बाद सोचा कि मंदिर हो आंऊ, वैसे भी भगवान से रिश्ता टूटे हुए
कई बरस बीत चूके थे. पर आज मन हुआ कि मंदिर जाकर भगवान को इस जिंदगी
के लिए शुक्रिया बोल कर आंऊ. थोड़ी बारिश कम हुई तो बिना छाता लिए ही घर से
मंदिर के लिए निकल गया. सोचा उस पहाड़ी वाली शिवजी के मंदिर जांऊ, जहां
आखिरी बार तुमने मुझे अलविदा कहा था.

मैं पूजा करने लगा, ऐसा लग रहा था मेरे मन का गुस्सा फूट कर बाहर निकलने
वाला है, और भगवान मुझे सांत्वना दे रहे हैं कि जो हुआ सो हुआ अब आगे बढ़
जाओ, पर कैसे बढ़ूं, इस मंदिर की सीढ़ियां भी तो मैने पहली बार उसके साथ ही
पार की थी. मैं अगरबत्ती जलाने लगा, मुझे याद आया कि हर बार अगरबत्ती मैं
पकड़ता था और माचिस तुम जलाते थे, पर आज मैं अकेला था. पूजा करने के बाद
मंदिर के नीचे गया जहां पर नारियल फोड़ने के लिए स्थान बना आ था, तुम
मुझे अक्सर कहती थी कि नारियल एक बार फोड़ना चाहिए, मैने एक बार में
नारियल फोड़ा. आज पहली बार मैने भगवान से पूजा में तुम्हें नहीं मांगा.
पूजा करने के बाद मैं सीढ़ियों से नीचे आ रहा था. मैं उतरते हुए उस मोड़ पर
पहुंचा जहां से हमलोग अलग हो गये थे, मैं उस मोड़ पर पहुंचा तो
मेरी धड़कने अचानक तेज हो गयी, ये वहीं अहसास था जब तुम सामने होती थी, तो
क्या आज फिर तुम आस-पास हो, आगे बढ़ा तो देखा सच में तुम आ रही थी. सर पर
दुपट्टा और हाथों में पूजा की टोकरी, कितने बरस बीत गये थे
आज तुमको देखा, तुम उतनी ही सुंदर लग रहे थे. हां बीतते हुए
वक्त ने तुम्हारे बालों और चेहरे में अपनी छाप छोड़ दी थी. मैं तुम्हें देख
ही रहा था कि तुम नजर झुकाये मेरे सामने से गुजर गये तुमने तो मुझे देखा
भी नहीं, क्या इतना बदल गये थे तुम, अपनी जिंदगी में आगे बढ़ते हुए तुम
सीढ़ियों से उपर जा रहे थे, और मैं वहीं पर खड़ा तुम्हें देख रहा था.
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फिर मैं
मंदिर से सीढ़ियां उतरने लगा, मुझे यह यकीन हो गया था कि वाकई अपनी जिंदगी
में तुम आगे बढ़ गये हो. पर मैं उसी मोड़ जाकर रुक गया, कुछ देर बाद तुम
उसी जगह पर थे, उसी बेंच पर उसी जगह बैठकर ऊंचाई से नीचे देख रहे थे.
मैंने नजर बचाकर तम्हें देखा, तुम अकेले थे, और तुम्हारें आखों के रास्ते
तुम्हारा सब्र गालों पर उतर रहा था, तुम उसे छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहे
थे. धीरे-धीरे बारिश बढ़ रही थी, और मैं सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था...
अद्भुत.... वियोग स्मृति का इतना सुंदर श्रृंगार बहुत कम हृदय ही रच पाता है. बहुत-बहुत बधाई और साधुवाद.
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