Tuesday 29 August 2017

लोकतंत्र मंर रहा है और हम लोकतंत्र की चीत्कार को अट्टाहस का शोर मान खुशियां मना रहें है.

कमजोर पत्रकारिता से लोकतंत्र कमजोर होता है, और कमजोर लोकतंत्र में आम जन परेशान होता है 

लोकतंत्र में हमें वोट देने का अधिकार है, और अगर हम वोट देते हैं तो हमें सवाल पूछने का भी अधिकार है. लेकिन ऐसा लगता है मौजूदा दौर में हम सवाल पूछने की परंपरा को त्याग चुके हैं और फैन बन चुके हैं, जो लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत है. पत्रकारिता में पढ़ा था की मजबूत पत्रकारिता लोकतंत्र में विपक्ष के रुप में काम करता है, सावल पूछता है लेकिन अब तो वो भी नहीं दिखायी देता है और ना ही सुनाई देता है.

ऐसा लगता है नेताओं के विकास विकास के शोर में विकास कहीं पीछे छूट गया है और पूरी जनता विकास को छोड़कर शोर के पीछे भाग रही है,यथार्थ को पहचानने की कोशिश कोई नहीं कर रहा है. सत्ता विकास के शोर में मगन में, विपक्ष सियासत के लिए मुद्दें तलाश रहा है, अफसरशाही अाराम फरमा रही है, और जनता तमाशा देखते हुए तमाशे का हिस्सा बन रही है. और इन सबके बीच आम आदमी दम तोड़ रहा है, इलाज के आभाव में बच्चों की मौत हो रही है.

सरकारी योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने के लिए 36 लाख रुपए के एलईडी युक्त दर्जनों वाहन राज्य भर में घूम रहे हैं और एंबुलेस के आभाव में खूंटी के कालामाटी में छात्रा की मौत हो जा रही है. गुमला में एक पिता को अपने मृत बच्चे को घर ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिल रहा है, अपने पीठ पर अपने मृत बेटे का शव ले जा रहा है, दवाओं के नाम पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं पर 50 रुपये नहीं मिलने के चलते बच्चे की मौत हो जा रही है. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में 28 दिन में 133 बच्चों की मौत हो गयी है, मरीज को जमीन के नाली के पास सुलाकर इलाज कराया जा रहा है और सरकार उद्घाटन और शिलान्यस करने में व्यस्त है. 



जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल में एक महीने के अंदर 164 बच्चों की मौत हो गयी, वजह किसी को पता नहीं जांच की जा रही है, एनएचआरसी स्पष्टीकरण मांग रहा है, विपक्ष इस्तीफा मांग रहा है. पर मौत सिस्टम की जिस लापरवाही से हुई उसे सुधारने का प्रयास कोई नहीं कर रहा है. यह वो आंकड़ें है जो सामने आये हैं, बाकि और कितनों की मौत हुई होगी जांच का विषय हो सकता है. स्कूलों में मिड डे मिल, गांवों में आंगनबाड़ी, पोषण सखी, ममता वाहन, गरीबों को मुफ्त चावल ना जाने समाजिक कल्याण की कितनी योजनाएं है और योजनाओं के नाम पर करोड़ों का बंदरबांट है, और झारखंड की राज्यपाल खुद कह रही है कि राज्य में 75 फीसदी आदिवासी बच्चे कुपोषित है.

हाइकोर्ट तक को दखल देकर यह कहना पड़ रहा है कि इस राज्य में आमलोगों की परेशानी समझने वाला कोई नहीं. सिर्फ स्वास्थ्य ही नहीं राज्य में बाकी सेवाओं का भी यह हाल है. बुनियादी सुविधाओं की घोर कमी है, स्कूलों में शिक्षकों की संख्या पर्याप्त नहीं है और टेट पास शिक्षक सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं. राज्य के स्तर पर कोई भी नियुक्ति होती है उसे हाइकोर्ट से गुजरना पड़ता है. इन सबके बीच सरकार हाथी उड़ाने में व्यस्त है. यह इसलिये क्योंकि सवाल पूछने वाले चुप है. पर सभी को समझना होगा की सिर्फ बच्चों की मौत नहीं हो रही है लोकतंत्र मंर रहा है और हम लोकतंत्र की चीत्कार को अट्टाहस का शोर मान खुशियां मना रहें है. लेकिन कब तक ध्यान रहे दुनिया गोल है कभी आपका भी नंबर आ सकता है. हां मन को सुकुन से भर ले अगस्त खत्म हो रहा है...

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