Saturday 8 September 2018

यह चुभन सिर्फ हाथों में नहीं थी मेरे दिल में भी थी, लेकिन तुम्हारी डबडबाई आंखे उस वक्त देख नहीं पायी






तुम मुझे कभी समझ नहीं पाओगे..... मुझे याद है जब तुम मुझसे आखिरी बार मिलने आये थे तब तुमने आंखों में आसुं भरकर सिर्फ यही बात कह पायी थी. सच बताऊं तो उस दिन भी मैं तुम्हे जाने नहीं देना चाहता था. जी में आया कि पूरी ताकत से तुम्हारा हाथ थाम लूं, मैने पकड़ा भी लेकिन तुम्हारे हाथ की अंगूठी मुझे चुभ रही थी. यह चुभन सिर्फ हाथों में नहीं थी मेरे दिल में भी थी, लेकिन तुम्हारी डबडबाई आंखे उस वक्त देख नहीं पायी. तुम्हारे जाने के बाद देर शाम तक मैं वही खड़ा था. मुझे उम्मीद थी कि तुम जरूर आओगे,पर तुम नहीं आये. जानते हो उस रात रातभर रूक-रूक बारिश हो रही थी. 


आज फिर वही 16 तारीख है, शुक्रवार की शाम है लगभग साढ़े पांच बज रहा है. आज पूरे 4 साल 6 महिने और 26 दिन बाद तुम मुझसे मिलने आ रहे हो. मेरे मन में कई तरह के सवाल है. इतने दिन तुम कहां थे, क्या किए. आज तुमने मुझे क्यों बुलाया है...इन सब बातों को सोचते सोचते मैं कब यादों में चार चार साल पीछे चला गया मुझे पता ही नहीं चला. अपनी शहर की ऐसी कोई सड़क नहीं बची थी जहां हमदोनो घुमे नहीं थे, तुम्हें हमेशा सबसे स्वादिस्ट चाट खाने की जिद रहती थी और इस चक्कर में हम हर रोज शहर के बीसीयों चक्कर लगा लेते थे. 



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सब कुछ तो ठीक था हमारे बीच, हां बाद के दिनों में मैं थोड़ा वक्त कम देने लगा.क्या करता घर के जिम्मेदारियों का बोझ था,ऑफिस का प्रेशर था, कम उम्र में ही समझदार बन गया. ऑफिस से थककर आता और तुम रात में बात करने की जिद करती....काश उस वक्त मैं तुम्हें समझा होता, तो तेरे बगैर ना जाने कितनी रातें खिड़की के बाहर ताकते हुए नहीं बितानी पड़ती. मैं ख्यालों के उधेड़बुन में खोया हुआ था और तुम मेरे सामने आयी..तुम तो बदल चुके थे. वो अगुंठी जो मुझे चुभी थी वो तुम्हारे इंगेजमेंट की थी...


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