
सुना दफन है कहीं, वो शमशान ढूंढ़ रहा हूं
खुदगर्ज हो गयी है दुनिया, बस खुद का वजूद चाहती है
दूसरों के लिए खुद के वजूद को कर दे कुर्बान
हजारों की भीड़ में वो मेहरबान ढूंढ़ रहा हूं
कातिल हो गये हैं शौक सबके, हर बात पर खून बहाते हैं
बात बे बात भोंकते है खंजर
गैरों की जिंदगी का मोल जो समझे
सनकियों के बीच में वो कद्र दान ढ़ूंढ़ रहा हूं
अब तो बस भी करो, बहुत हो गया
कहां से कहां क्या से क्या हो गया
एक घर में हैं लेकिन एक घर के नहीं है
किसने उपजायी यह नफरत वो शैतान ढूंढ़ रहा हूं
दुनिया के मेल को समझे, भगवान के खेल को समझे
रिश्तों का मरम समझे, खुद का धर्म समझे
बस मै तो वो इंसान ढूंढ़ रहा हूं
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