Wednesday 6 September 2017

एक बार ठहर जाओं रुक जाओं थोड़ा आराम से सोच लो मेरे बारे में की तुम्हारे उर्जा की भूख और विकास की दौड़ ने मुझे बंजर बना दिया है, मै धरती मां हूं मां मुझे मां ही रहने दो, अपनी जरुरतों के लिए मुझे बांझ मत बनाओं


ज सुबह एक वीडियो देखा जिसमे जल संरक्षण को लेकर एक दूरदर्शी सोच दिखायी गयी थी साथ ही बताया गया था कि अगर वक्त रहे हम नहीं चेते तो हमारी आने वाली पीढ़ी को गला तर करने भर भी पानी नसीब नहीं होगा. वीडियों ने अंदर तक झकझोर दिया कि क्या वाकई विकास की दौड़ में हम इतने अंधे हो गये है कि विनाश नहीं दिख रहा है या हम विनाश को देखना नहीं चाह रहे है. दूसरी वाली बात मौजूदा दौर में सत्य लगती है क्योंकि हम इंसान अब कम से कम इतने समझदार जरुर हो गये है कि विनाश का आकलन नहीं कर पाये या जो हमे बार बार दिखाने का प्रयास किया जा रहा है वो नहीं देखे.
उ र्जा की भूख ने हमे इतना भूखा कर दिया है कि हम उसीके पीछे भाग रहे हैं और प्रकृति हमसे बार- बार कह रही है की एक बार ठहर  जाओं रुक जाओं थोड़ा आराम से सोच लो मेरे बारे में की तुम्हारे उर्जा की भूख और विकास की दौड़ ने मुझे बंजर बना दिया है, मै धरती मां हूं मां मुझे मां ही रहने दो, अपनी जरुुरतों के लिए मुझे बांझ मत बनाओं. पर हम है कि रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं, क्योंकि हमे लग रहा है कि बाद में रुक लेंगे अभी रुक कर क्या करे, पर वास्तविकता यह है की रुकने का समय, प्रकृति की पुकार को सुनने का समय तो बहुत बहले ही आ गया था, लेकिन हम अपनी हठधर्मिता के चलते देरी पर देरी कर रहे हैं.
ए  अंग्रेजी वेबसाइट के मुताबिक पिछले 30 सालों में 23716 औद्योगिक परियोजनाओं के लिए जंगलों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज की गयी है. वेबसाइट में लिखा हुआ है कि प्रत्येक वर्ष 250 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल का जंगल वन कार्यों को छोड़कर अन्य कार्यों के लिए दिया जाता है, ये सरकारी आकड़े हैं और जो वनो की अवैध कटायी होती है उसके आंकड़े हमारे पास नहीं आते हैं, तो आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि हर साल प्रकृति को कितना नुकसान हो रहा है. जिस अनुबाद में जंगलो को उजाड़ा जा रहा है उस अनुपात में पौधारोपण नहीं किया जा रहा है, क्योंकि काटनें में पांच मिनट लगते हैं और एक बड़ा पेड़ बनने में 25 साल लगते हैं.
यह तो वनों का हाल है जिसका छोटा सा आंकड़ा पेश किया गया है. भूगर्भ जलस्तर का भी यही हाल है. पानी के लिए मारामारी तो शुरु हो चुकी है अलग बात है कि मेरे पढ़ने वाले अभी तक इस मारामारी के चक्कर में नहीं पड़े हैं सिर्फ अखबारों में पढ़ा है, अब जल संरक्षण कैसे करना आप सभी को पता है, आप नहीं करते हैं तो सोच लीजिये आप अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए अपने बच्चों के लिए क्या छोड़कर जा रहे हैं.
एक बात हम सभी को समझना होगा कि सरकार को अपना प्रचार करने से फुर्सत नहीं है, खुद को नेता बताने वाले नेता अपनी सियासत करने में व्यस्त हैं, उद्योगपति जैसे तैसे करके नोट बनाने में व्यस्त हैं पता नहीं उन नोटों का क्या करेंगे जब धरती पर जीवन ही नहीं रहेगा. फिर यह जिम्मेदारी हमारी ही बनती है की हम अपनी धरती मां को बांझ होने से बचाये बंजर होने से बचाये. अब और देरी मतलब और ज्यादा नुकसान, इसलिए प्रकृति और पर्यावरण के बचाव के मामले में दूसरों का मुंह देखने के बजाय आप अपने अंदर झांके, शुरुआत खुद से, अपने घर से करे अपने आस पास से करे, और जरुर करे, मैं इसलिए बोल रहा हूं क्योंकि मैं करता हूं. 

हां अगर अब भी हम नहीं सुधरे तो एक सुबह चिलचिलाती धूप और तन को झुलसा देने वाली गर्मी में एसी लगे कमरे में पसीने से नहाकर उठेंगे और आपका पोता, या आपके बेटे का पोता अपने दादाजी से पूछेगा, दादाजी जंगल कैसा होता है, नदीयां कैसी होती हैं, जंगली जानवर किसे कहते हैं, यकिन मानीए आपके पास पछतावा के अलावा और कोई जवाब नहीं होगा. वक्त नहीं है पर सुधर जाइये. सावधान हो जाइये.  


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