मे रा यकिन मानीये मैं सच कह रहा हूं, और मैं किसी पूर्वाग्रह या किसी विचारधारा से ग्रसित नहीं हूं वरना मेंरे उपर भी वामपंथी और दक्षिणपंथी पत्रकार का ठप्पा लग जायेगा. पर जो देखता हूं वहीं महसूस करता हूं वही बता रहा हू, और सच यह है कि सरकार इतनी मजबूत है कि उसे गुमान हो गया हैं, विपक्ष इतना कमजोर हो गया है कि सड़क पर बैठकर लाउडस्पीकर के सहारे गलाफाड़ कर चिल्ला रहा है, पर उसकी आवाज वाहनों के शोर में दब जा रही है.


साहब आलम यह है कि गला फाड़ के गरीब गरीब कहने वाले अमीर पर अमीर हो रहे हैं, और बेचारा गरीब आज भी पेट भरने से आगे सोच नहीं पा रहा है. यह मत सोचियेगा वामपंथी हो गया हूं, गांव की सच्चाई देख कर बता रहा हूं. गरीबों के लिए बनी योजनाएं धूल फांक रही है, और गरीब भी धूल फांक रहा है. जो चावल मिलता है आधा चूहे खा जाते है और पीडीएस वाले खा जाते हैं. साहब गांवों में जब आप जाते हैं तो सबसे आखिर में खड़े व्यक्ति से सवाल क्यों नहीं पूछते हैं कि समस्या क्या है.

क्यों सिर्फ आगे पीछे घुमने वाले वार्ड सदस्य मुखिया अधिकारी और चमचों से पूछते है कि क्या हाल, क्यों बताते है कि फलाने के घर में जाना है, गांव आपका है जाकर घुस जाइये किसी भी गरीब के घर में सच्चाई से सामना हो जाएगा. आज जो हालात है उसे लेकर मै सवाल कर रहा हूं, मैं किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहा हूं, गलती किसकी है, मैं इस पर नहीं जा रहा हूं, पर दशकों से वही गलती क्यों दोहरायी जा रही है. सच में सियासत सस्ती हो गयी है, तभी तो बार-बार जनता को धोखा दिया जा रहा है. सियासत वाले सियासत करते नहीं थक रहे हैं, गरीब और किसान मेनहत करते नहीं थक रहा है काम सब कर रहें हैं फिर भी रोना उसी बात का है.
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