Thursday 7 September 2017

अगर आप कहते हैं कि देश में महंगाई बढ़ी है, तो यकिन मानीये जनाब आप मुगालते में जी रहे हैं जनाब जरा बाहर निकल कर देखिए सियासत कितनी सस्ती हो गयी है.





मे रा यकिन मानीये मैं सच कह रहा हूं, और मैं किसी पूर्वाग्रह या किसी विचारधारा से ग्रसित नहीं हूं वरना मेंरे उपर भी वामपंथी और दक्षिणपंथी पत्रकार का ठप्पा लग जायेगा. पर जो देखता हूं वहीं महसूस करता हूं वही बता रहा हू, और सच यह है कि सरकार इतनी मजबूत है कि उसे गुमान हो गया हैं, विपक्ष इतना कमजोर हो गया है कि सड़क पर बैठकर ला‌उडस्पीकर के सहारे गलाफाड़ कर चिल्ला रहा है, पर उसकी आवाज वाहनों के शोर में दब जा रही है.

मै सरकार की आलोचना नहीं कर रहा हूं, क्योंकि ऐसा भी नहीं है कि सरकार बिलकुल निकम्मी है, पर जहां काम होना चाहिए वो नहीं हो रहा है, और जरुरत से ज्यादा वाह वाही लूटी जा रही है. जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल में जितनी बच्चों की मौत हुई सभी की मौत कुपोषण से हुई, यह मै नहीं मीडिया रिपोर्टस में कहा गया, जांच टीम ने यह  बात कही, साहब अगर कुपोषण से 
बच्चों की मौत हो रही है तो फिर आंगनबाड़ी में बच्चों को मिल रहे पोषाहार कौन गटक रहा है लगे हाथ इसकी भी जांच पंद्रह दिनों के अंदर करा दिजीये, और अगर इस मामले में विपक्ष हल्ला कर रहा है तो क्या गलत कर रहा है साहब, किसी की आवाज तो आप तक पंहुचे क्योंकि आपके कान में तो सिर्फ प्रचार वाहन का शोर सुनाई देता है जो राज्य भर में घूम-घूम अापका गुनगाण कर रहे हैं और जनता इसी से खुश है. भले मरीज को अस्पताल जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिले पर प्रचार के वाहन होना जरुरी है, क्योंकि सियासत भले ही सस्ता हो गया है साधने का तरीका तो महंगा है ना. इन दिनों गुमला जिला अखबारों में बहुत पढ़ा जा रहा है क्योंकि वहां अस्पताल में इंसानियत बेमौत मारा जा रहा है. समझ में नहीं आता है कि आखिर मौत पर मौत हो रही है पर गलती क्या है कोई नहीं पकड़ पा रहा है, सारे इंजीनियर डॉक्टर फेल हैं. क्यों फेल है नहीं पता, आप अंदाजा लगा लीजिये. 

साहब आलम यह है कि गला फाड़ के गरीब गरीब कहने वाले अमीर पर अमीर हो रहे हैं, और बेचारा गरीब आज भी पेट भरने से आगे सोच नहीं पा रहा है. यह मत सोचियेगा वामपंथी हो गया हूं, गांव की सच्चाई देख कर बता रहा हूं. गरीबों के लिए बनी योजनाएं धूल फांक रही है, और गरीब भी धूल फांक रहा है. जो चावल मिलता है आधा चूहे खा जाते है और पीडीएस वाले खा जाते हैं. साहब गांवों में जब आप जाते हैं तो सबसे आखिर में खड़े व्यक्ति से सवाल क्यों नहीं पूछते हैं कि समस्या क्या है. 

क्यों सिर्फ आगे पीछे घुमने वाले वार्ड सदस्य मुखिया अधिकारी और चमचों से पूछते है कि क्या हाल, क्यों बताते है कि फलाने के घर में जाना है, गांव आपका है जाकर घुस जाइये किसी भी गरीब के घर में सच्चाई से सामना हो जाएगा. आज जो हालात है उसे लेकर मै सवाल कर रहा हूं, मैं किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहा हूं, गलती किसकी है, मैं इस पर नहीं जा रहा हूं, पर दशकों से वही गलती क्यों दोहरायी जा रही है. सच में सियासत सस्ती हो गयी है, तभी तो बार-बार जनता को धोखा दिया जा रहा है.  सियासत वाले सियासत करते नहीं थक रहे हैं, गरीब और किसान मेनहत करते नहीं थक रहा है काम सब कर रहें हैं फिर भी रोना उसी बात का है.    

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