Saturday 29 December 2018

रिश्ता तो हमदोनो के बीच कब का खत्म हो चुका है



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जानते हो आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है... रात के लगभग एक बज रहे हैं, आंखों में नींद नहीं है. जबकि दिन भर ऑफिस में काम करते हुए यह सोच रहा था कि आज घर जाकर जल्दी सो जाऊंगा. पर शायद भूल गया था कि अब चैन की नींद कहां है. घर पहुंचा तो वही रोज की खिटपिट थी. शादी के डेढ़ साल के अंदर रिश्ता तलाक तक पहुंच जायेगा यह कभी सोचा नहीं था. मुझे तो लगता है बस अब कागजी कार्रवाई बाकी रह गयी है. रिश्ता तो हमदोनो के बीच कब का खत्म हो चुका है. 


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कभी कभी तो मन करता है भाग जाऊं कहीं दूर, ताकि एक पल के लिए थोड़ा सुकून के साथ रह सकूं. पर मां को देखकर हर बार कदम रुक जाते हैं. मां अक्सर यह कहती है बेटा मेरी वजह से तुम्हारी जिंदगी खराब हो गयी.  हां खराब हो गयी है मेरी जिंदगी... अब लगता है काश सिर्फ तुम होते तो कितना अच्छा होता. 





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मैं आगे नहीं बढ़ता पर घरवालों की खुशी के लिए मैंने अपनी जिंदगी दांव पर लगा दी. आज रात भी वही हो रहा है, बीवी की जुबान चल रही है. वही पुरानी बात, तुम्हारी मां खराब, तुम्हारी बहन खराब, मेरे लिए समय नहीं है, पैसा नहीं है.आज रात सच में तकलीफ हुई. लगा बहुत लंबा वक्त ले लिया एक फैसला करने में कि अब नहीं, साथ में रहना मुश्किल है मैं तलाक लेना चाहता हूं.  

Friday 9 November 2018

काफी इंतजार के बाद तुम जब पहली बार छत पर दिया लेकर आये तो लग रहा मानो एक साथ कई चांद सारे आसमां में निकल गये हो

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दीपावली का दिन है. दिन भर अपने कमरे को साफ करने में और मां के बताये पूजा के सामान लाने मेें बीत गया. अखबार के दफ्तर से छुट्टी मिली थी. दिन भर सोने का मन था लेकिन मां ने छुट्टी का दिन का पूरा वसूल लिया. अपने रूम की सफाई करते हुए एक पुरानी डायरी हाथ लग गयी. काफी दिनों से मैं इसे खोज रहा था, आज जाकर मिली है कमबख्त. जानते हो तुम्हारे जाने के बाद यही डायरी मेरा सहारा है. इस डायरी से कई यादें जुड़ी हुई है. तुमने ही मुझे मेरे जन्मदिन पर यह डायरी मुझे गिफ्ट की थी और मैं अपनी रचनाएं इस डायरी में लिखकर तुम्हें पढ़ने के लिए देता था और तुम हर बार मेरी लिखी कविता, गीत और गजल के नीचे मुझे चिढ़ाने के लिए अपना रिमार्क लिखती थी, मुझे पसंद नहीं आया और अच्छा लिखो. फिर बाद में बोलती थी बहुत अच्छा तो वो तो तुम्हें चिढ़ाने के लिए लिखा था. 


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पता है ऐसा क्यों था,क्योंकि तुम्हें  मालूम था कि मेरी हर रचना सिर्फ तुम्हारे लिए थी, उनमें सिर्फ थे....आज भी सिर्फ तुम हो. डायरी के पन्ने पलट रहा था और पुरानी यादों में डूब रहा था. मुझे याद है दीपावली की ही रात थी जब पहली बार तुमने पहली बार अपने प्यार का इजहार किया था. पर उससे पहले मैं बहुत डरा हुआ था, क्योंकि जब तुम्हें पहली बार मेरे प्यार के बारे में जानकारी मिली थी, तुमने मेरे दोस्त को बुलाकर बहुत धमकी थी...पर मैं भी हारने वाला नहीं था और तुम्हारे पीछे लगा रहा. तुम्हारे बस के आगे पीछे जाना, लंच में तुम्हारे साथ-साथ...नहीं तुम्हारे पीछे पीछे पानी पीने जाता था...जिसके बाद शायद मेरा डेडिकेशन देख कर तुम पिघल गये और अपनी सहेली के जरिये मुझे मैसेज कराया था कि दीपावली की रात वो छत पर मेरा इंतजार करेगी. 


मुझे याद है उस दिन कैसे बेचैनी में मेरा दिन बीता था. पूरा दिन शाम होने के इंतजार में बीता था. जिसके बाद आखिरकार दिन ढल गया था, पर मैं शाम से पहले से ही अपने घर के छत पर तुम्हारा इंतजार कर रहा था. काफी इंतजार के बाद तुम जब पहली बार छत पर दिया लेकर आये तो लग रहा मानो एक साथ कई चांद सरे आसमां में निकल गये हो, ये तुम्हारा प्यार था या नहीं पर यकीन मानो ऐसा लगा कि मैं जिस रोशनी की खोज बचपन से लेकर अभी तक की दिवाली में कर रहा था वो आज मुझे दिखा था, महसूस किया था. 

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जानती हो वो मेरी पहली और आखिरी सबसे अच्छी दिवाली थी. क्योंकि उस दीवाली के बाद मेरी जिंदगी में जो अंधेरा हावी हुआ, उसे दूर करते-करते अब मैं थक चुका हूं. आज फिर दीपावली की शाम है. पूरे मुहल्ले में रौनक है. घर में रौनक है, लेकिन मेरे मन के कोने में अभी भी वो अंधेरा बसा हुआ है. जिसे सिर्फ तुम भर सकती हो. फिर से शाम हो गयी है और मैं बुझे हुए मन से दिया जलाने के लिए छत के ऊपर आया हूं, हर दीपावली की तरह आज भी मुझे उम्मीद है कि तुम अपने छत पर आओगे. दीया रख कर मैं कुछ देर के लिए शहर में फैली रोशनी को देख रहा था इतने में तुम्हारे छत पर नजर पड़ी एक प्यारी सी बच्ची हाथ में फूलझड़ी लिये छत पर आकर खेलने लगी और पीछे से तुम हाथों में दिया लेकर छत पर रखने आयी थी. फिर मैं नीचे अपने कमरे में चला आया. नहीं पता की तुमने मेरी छत की ओर देखा भी या नही....पर मेरे जीवन का अंधेरा आज और गहरा गया..... 

Saturday 13 October 2018

तुम्हारी आवाज में तल्खी थी. हलांकि हमारा रिश्ता बुरे दौर से गुजर रहा था... लेकिन तुम्हारा यह तल्ख अंदाज मुझे अटपटा सा लगा..


Pic by Pawan Kumar

दिसंबर की ठिठूरती शाम है, हवाओं में हड्डी कपां देने वाली सिहरन है. सोच तो रहा था कि शाम के वक्त घर में बैठकर मां के साथ बातें करूंगा, लेकिन तब ही तुम्हारा फोन आ गया. तुमने कहा कि शहर के पश्चिम में स्थित ऊंची पहाड़ी के पास स्थित रेस्त्रां के ऊपरे तल्ले पर तुम मेरा इंतजार कर रहे हो. तुम्हारी आवाज में तल्खी थी. हलांकि हमारा रिश्ता बुरे दौर से गुजर रहा था... लेकिन तुम्हारा यह तल्ख अंदाज मुझे अटपटा सा लगा. मैने तुंरत जैकेट पहना....मां ने हड़बड़ाते देख मुझे गलाबंद देते हुए पूछा इतनी जल्दबाजी में कहां जा रहे हो. जवाब में मैने कहा बस तुरंत आता हूं. मैने अपनी बाइक ली और पांच मिनट में मैं उस पहाड़ी के रास्ते पर था. शाम के चार बज रहे थे, जल्दबाजी में मैने हैंड ग्लॉव्स नहीं पहना था, सर्द हवाओं के कारण हाथ जकड़ा जा रहा था, पर पहुंचने की  जल्दी के चलते स्पीड कम नहीं हो रही थी... 

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तुम तो शाम करे वक्त घर से नहीं निकलती थी, शादी के बाद तो बिल्कुल नहीं पर आज अचानक क्या हो गया तुम्हें, मन में कई तरह के ख्याल आ  रहे थे. इसी उधेड़बुन के बीच में कब ऊंची पहाड़ी वाला रेस्त्रां पहुंच गया, बाइक पार्क की और सीधा ऊपर छत पर चला गया. तुम सबसे किनारे वाली उसी कुर्सी पर बैठी थी, जहां से पूरा शहर दूर-दूर तक दिखाई पड़ता था. सूरज दिन की अपने अंतिम यात्रा पर था, सर्द शाम में उसकी लालिमा तुम्हारे सिंदूर की तरह लाल दिख रही थी....हां मगर वो सिंदूर मेरे नाम का नहीं था. तुम्हारी शादी के बाद भी हम दोनों अक्सर मिलते थे. पर आज तुम्हारा चेहरा खिला हुआ नहीं था. तुम्हारी नजरे कहीं और देख रही थी. मैं तम्हारे सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया.....



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तुम आज बदले हुए दिख रहे थे. मै पूछने वाला था कि क्या हुआ, उससे पहले तुमने कहा अब हमदोनो के बीच कुछ रिश्ता नहीं है....तुम पहले भी इस तरही की बाते मजाक में करते थे...पर आज तुम्हारी आवाज में तल्खी थी...मैने पूछा क्या हुआ....तुम ऐसे कैसे कोई फैसला कर सकते हो. शाम के साथ तुम्हारी आवाज भी गहरी हो रही थी, ढलते सूरज का सूर्ख लाल रंग फीका धूंधला पर रहा था. रेस्त्रां के छत पर सिर्फ हमदोनों थे..और चारों ओर खामोशी थी....मैने कहा कि क्या यह तुम्हारा अंतिम फैसला है.. उसने फिर गुस्से में कहा हां.....तंग आ गयी हूं मै तुमसे....तुम मेरे लायक नहीं हो....पता नहीं मैने तुमसे क्यों प्यार किया....आज के बाद मेरे ख्याल में भी मत आना.....एक सांस में तुम सब कुछ कह गये.....तुम उठे और जाने लगे...मैने कहा चलो मैं छोड़ देता हूं....कम से कम आखिरी बार तो इस पहाड़ी रास्ते पर एक साथ चले....



मेरी बाइक धीरे-धीरे ढलान से उतर  रही थी.... मेरे गालो से मेरा सब्र नीचे उतर रहा था....तुम्हारा घर पास आ रहा था....मै तुमसे दूर जा रहा था....वो चुपचाप मेरे पीछे बैठी हुई थी....फिर उसने कहा....सुनो मेरा इंतजार मत करना...मैने कहा मैं करूंगा....उसने कहा कब तक....दशकों का तजुर्बा तुम्हारे चेहरे पर दिखाई देने लगे तब भी मैं सिर्फ तुम्हारा इंतजार करूंगा....इस उम्मीद में कि कम से कम एक दिन तुम्हारे साथ तुम्हारा होकर जी सकूं....आज कई बरस बीत चुके हैं.....मुझे उम्मीद है तुम जरूर आओगे....मेरी आखिरी ख्वाहिश पूरी करने के लिए......

Friday 5 October 2018

हीरादह धाम: यहां आकर आप एक चीज जरूर सीखेंगे की जीवन में कितनी भी कठिनाई हो निरंतर प्रयास से आप जरूर आगे बढ़ सकते हैं.

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जीवन में कठिनाइयों के बीच पत्थर को चीर कर आगे बढ़ने का गुण सिखाती  शंख नदी
नदी अपना रास्ता खुद बना लेती है और अगर कोई उसकी तेज धार के बीच में आता है तो वह उसे तहस-नहस करके आगे बढ़ जाती है. गुमला जिले के रायडीह प्रखंड स्थित हीरादह धाम इस बात की तस्दीक करता है. हीरादह धाम एक दर्शनीय स्थल होने के साथ-साथ एक धार्मिक स्थल भी है. यहां पर भगवान भास्कर का मंदिर बना हुआ है और भगवान जगन्नाथ का भी छोटा सा मंदिर है. हीरादह में लगे हुए साइन बोर्ड के अनुसार इस श्री हिंदू धर्म रक्षा उपकेंद्र की स्थापना 1951 में हुई थी.  यह श्री 1008 श्री रामरेखा धाम सिमडेगा से जुड़ा हुआ है. हीरादह धाम शंख नदी की तट पर स्थित है.
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Pawan Kumar

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शंख नदी यहां पर पूरे वेग के साथ बहती है. मंदिर के पीछे बीच नदी पर मौजूद चट्टान का चिकना पहाड़ इसका प्रमाण है. यहां फुटबॉल ग्राउंड जितना बड़ा चट्टान का मैदान है, जो बिल्कुल समतल है. पानी के बहाव के कारण यह चिकना और समतल हो गया है. जिसके कारण अपने आप में अनोखा प्रतीत होता है. इतना ही नहीं पानी के तेज घुमाव के कारण बीच चट्टान पर छोटे- बडे कुंड बने हुए हैं, जो इस बात की गवाही देने के लिए काफी है की शंख नदी और नदी के रास्ते में पड़ने वाले चट्टान का संघर्ष सदियों पुराना है. चट्टान में बने कुंड 10 फीट तक गहरे हैं और उनमें पानी भरा हुआ है. उन कुंड में घुसने के मनाही है क्योंकि यह जानलेवा साबित हो सकता है. अंदर में और फिसलन हो सकती है,ओर उसके अंदर गुफानुमा छेद भी हो सकता है जिससे पानी अंदर घुसता है और बाहर निकलता है. देखने में यह कुंड बेहद ही खूबसूरत दिखाई देता है और पिकनिक स्पॉट की तरह है. 

Pawan Kumar

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हीरादाह धाम के आस-पास भी प्रकृति ने असीम सुंदरता बिखेरी है. नदी के दोनो ओर स्थित उचें पहाड़ और घने जंगल इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. शंख नदी छोटा नागपुर पठार के पश्चिमी छोर में उत्तरी कोयल के विपरीत प्रवाहित होती है. यह गुमला जिला के रायडीह के दक्षिण से प्रारम्भ होती है. उद्गम स्थल के आरंभ में यह नदी काफी संकरी एवं गहरी खाई का निर्माण करती है. अपने प्रवाह मार्ग में यह राजाडेरा के पास 200 फीट ऊंचा जल प्रपात बनाती है, जो सदनी घाघ जल प्रपात के नाम से जाना जाता है.

Pawan Kumar

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अगर आप झारखंड की प्राकृतिक सुंदरता को देखना चाहते हैं तो हीरादह धाम आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है जिसे अभी तक बहुत कम लोगों ने ही एक्सपेलोर किया है. यहां आने के लिए दिन भर का समय लेकर चलना होगा. रांची से ढाई घंटे के सफर के बाद आप यहां पहुंच सकते हैं. रांची गुमला आने के बाद आपको गुमला के मांझाटोली से बायें मुड़ना पड़ता है. बायें मुड़कर आगे जाने के बाद रायडीह गांव से आगे जाने के बाद रमजा गांव पहुंचा जाता है. रमजा गांव के अंदर घुसकर रास्ते से आप सीधा हीरादह धाम पहुंच सकते हैं. खाने-पीने का इंतजाम आप खुद कर ले और यह सुनिश्चित कर ले की आपके वाहन में तेल खत्म नहीं होगा और चारों टायर अच्छे कंडीशन में हैं. 14 जनवरी को यहां मकर संक्राति के अवसर पर विशाल मेला लगता है. यहां आकर आप एक चीज जरूर सीखेंगे की जीवन में कितनी भी कठिनाई हो निरंतर प्रयास से आप जरूर आगे बढ़ सकते हैं. 

Friday 21 September 2018

लगभग रात के पौने बारह बजे हूम्म...हूम्म..हूम्म की आवाज....गायब हो रही है यह परंपरा....




आसाढ़ महीने की आमावस की रात थी, दिन भर की हवा और बारिश में पेड़ और पक्षी सब थक चुके थे और थक कर गहरी नींद में सो रहे थे, लगभग रात के पौने बारह बजे हूम्म...हूम्म..हूम्म की आवाज बाहर से आने लगी, और  लेकिन कुत्तों  के  भौंकने के शोर में वो आवाज दब गयी. अचानक नींद खुलने के कारण मुझे सहसा कुछ याद नहीं आया और मैं थोड़ा सहम गया. जिसके बाद फिर भागने दौड़ने की आवाजे आयी. जिसके बाद मैं लाइट जलाने वाला था कि मां ने मुझे लाइट जलाने से रोक दिया. मैंने मां से पूछा की यह कैसी आवाज थी. मां ने कहा-रोग भगाने वाले लोग आये थे. शहर में रहोगे तो क्या जानोगे परंपरा क्या होती है. गांव से जुड़े रहोगे तब  तो समझ पाओगे की गांव में कैसे-कैसे रिती-रिवाज होते हैं.


गायब हो रही है यह परंपरा 
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दरअसल दक्षिणी छोटानागपुर के जिलों में आदिवासी समुदाय के बीच यह परंपरा होती है और आदिवासी बहुल गांवों में रहने वाले दूसरे सनातन धर्म के लोग भी इस परंपरा को मानते हैं. इनका मानना है कि आसाढ़ की अमावस्या को रोग भगाया जाता है जिससे गांव में आने वाली मुसिबत और बीमारियां दूर हो जाती है. मान्यता के अनुसार रात के वक्त जब गांव के सभी घरों के दिये बुझ जाते हैं तब गांव के ही 10-12 युवक नग्न होकर हाथ में लाठी लेकर गांव में घूमते हैं और उस रात को सभी के घरों के आंगन में मिट्टी का कोई पुराना बरतन रखने के लिए कहा जाता है. सभी युवक गांव के एक-एक घर में जाकर अंधेरे में ढूंढकर उस बरतन को फोड़ते हैं. इस दौरान सभी लड़के सांकेतिक भाषा के तौर पर हूम्म...हूम्म की आवाज निकालते हैं. जिसके बाद सभी लड़के गांव की सीमा तक जाते हैं और सभी लाठी डंडे को वही छोड़ देते हैं. सुबह के वक्त सभी ग्रामीण अपने घरों को गोबर से लीप कर साफ करते हैं और फोड़े हुए मिट्टी के बर्तन के साथ पुराने कपड़ों को भी घर से निकाल कर गांव के सीमा पर जाकर फेंक देते हैं.


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सदियों पुरानी परंपरा पर मंडरा रहा संकट

सदियों से यह परंपरा आदिवासी समाज के बीच चली आ रही है. लेकिन पिछले दो दशको से इसमे भारी गिरावट दिखी. हो सकता है यह अंधविश्वास हो लेकिन इसी के बहाने ग्रामीण सावन बारिश से पहले अपने घर की सफाई कर लेते थे. मिट्टी के टूटे फूटे बरतन जहां गंदा पानी जमा होता उसे फेंक देते थे. इससे बिमारियों से बचाव होता था. लेकिन बढ़ते शहरीकरण के कारण यह परंपरा अब खत्म हो रही है. गांव में अब युवा वर्ग भी इस काम को अंजाम देने के लिए आगे नहीं आता है. गांव भी अब खत्म होते जा रहे हैं. इस परंपरा से अतित के कई तार जुड़े हुए होंगे. इसेे बचाने की जरूरत है. 

बस अब हम सीख गये और सही रास्ते पर हैं, मुझे अच्छी तरह याद है ......


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बस अब हम सीख गये और सही रास्ते पर हैं, मुझे अच्छी तरह याद है तुम्हारा आखिरी मैसेज यही था. उसके बाद तो जैसे तुम गायब हो गये. ना तुमने मेरा फोन उठाया और ना ही मेरे मैसेजस का जवाब दिया. वैसे अच्छा किया तुमने, आज लगता है तुम्हारा फैसला सही था. सच तो यह है कि मैं तुम्हारे साथ चलने लायक नहीं था. मैं ऐसा इसलिए नहीं बोल रहा हूं की तुम मुझे छोड़ कर चली गयी और वापस नहीं आयी बल्कि इसलिए बोल रहा हूं की जो किया वही एकमात्र उपाय था. क्या करते तुम भी, तंग आ गये थे ना मेरी रोज रोज की हरकतों से. क्या करता मैं लापरवाह था, लापरवाही से जीना मेरी आदत बन चुकी थी, और वो मुझे अच्छा लगता था. मैं मस्तमौला यायावर की जिंदगी जीना चाहता था, और तुम मुझे बंधन में बाधंना चाहती थी. सच बताऊं तो मैं उस खूटे से भी बंध जाता पर शायद तुमने कभी सच्चे दिल से कोशिश नहीं की. वैसे अच्छा हुआ, आज मैं अपने दिल के सारी भड़ास इस खत के जरिये निकाल देना चाहता हूं. क्योंकि अब मुझे फिर से जीने की वजह मिल गयी है. मुझे मेरे जैसा मुझे समझने वाला साथी मिल गया है...अगले महीने की 26 तारीख को मैं दूसरी शादी कर रहा हूं.... 

Tuesday 11 September 2018

'नो एफआईआर नो अरेस्ट फैसला ऑन द स्पॉट'....क्या लोग अपने हाथ में न्याय लेकर चलना चाहते हैं......


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'नो एफआईआर नो अरेस्ट फैसला ऑन द स्पॉट' यह फिल्मी डॉयलॉग सन 2002 में आयी फिल्म 'क्रांती' में अभिनेता बॉबी देवल ने दिया था. उस वक्त किसी ने यह नहीं सोचा होगा की फिल्म का यह डॉयलॉग एक दिन हकीकत बन जायेगी. हां आज समाज में यह हकीकत है कि भीड़ हिंसा पर उतारू है. ऐसा नहीं है कि भीड़ की हिंसा भारत के लिए कोई नयी बात है. पहले भी रंगे हाथ पकड़े जाने पर अपराधियों को बलि चढ़ जाती थी. बदलते समाज या यूं कहे ज्यादा पढ़े लिखे समाज ने इसके लिए एक नया नाम गढ़ लिया 'मॉब लींचिंग'. पर क्या समाज में हिंसा जायज है, या हम एक ऐसे समाज में जी रहे हैं जहां हर व्यक्ति की जान खतरे में है. जहां एक छोटी सी गलती आपको समझने का मौका नहीं देती है. भीड़ के पास एक हजार हाथ तो होते हैं लेकिन उनमें से एक भी संवेदनशील व्यक्ति का दिल नहीं होता है. एक भी कान नहीं होते हैं जो हिंसा का शिकार हो रहे शख्स की बात को सुन सके, या फिर हर कोई उस भीड़ में भीड़ का हिस्सा हो जाता है. सवाल बहुत है. 


क्या आम जनता गुस्सैल हो चली है?
पहला सवाल यह है कि आखिर आम जनता के दिमाग में इतना गुस्सा कहां से आ  रहा है, क्यों आ रहा है. क्योंकि अगर आप रोज की दिनचर्या में देखे तो सब लोग  आपको रोजी-रोटी कमाने की जुगत में भागते हुए दिखाई देते हैं. तो क्या नाराजगी  काम को लेकर है, या आगे ना बढ़ पाने की है. चलिये किसी ने अपराध कर दिया, या  करते हुए पकड़ा गया तो भीड़ ने उसे गुस्से से मारा और इस दौरान उसकी मौत हो  गयी, मान लिया लेकिन उनका क्या जो घूमते फिरते या किसी मोहल्ले में खड़े पाये  गये और भीड़ के शिकार हो गये. हालात यह है कि अगर आप बाइक से जा रहे हैं  सामने कोई ऑटो, रिक्शा या साइकिल आ जाये, फौरी तौर पर जुबान से मां और  बहन की गाली निकलती है. इसलिए अगर आप यह सोच रहें है कि आप बचे रहे हैं तो, आप गलत सोच रहें है. आपके आस-पास में ही मॉब लिंचिंग करने वाला दिल दिमाग और हाथ घूम रहा है जो कभी भी बेकाबू हो सकता है.  
बचपन से हम फिल्मों में एक डॉयलॉग सुनते आये हैं, कि कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए, तो आज लोग काननू तो हाथ में लेकर क्यों चल रहे हैं, क्या यह मन में दबा वो आक्रोश है जो दशकों से जनता देख रही है समझ रही है, क्या जनता को न्यायपालिका और पुलिस से विश्वास कम हुआ है. क्योंकि सच्चाई तो यह भी है कि एक मामले पर फैसला आते-आते कई साल लग जाते हैं, कई मामलों में पीड़ित को न्याय नहीं मिल पाता है. पैसे और रूतबे के दम पर फैसले पलट दिये जाते हैं. तो क्या मॉब लिंचिग इन सभी की अभिव्यक्ति है कि आम आदमी सोच रहा है कि पुलिसिया पूछताछ, थाने के चक्कर, कोर्ट के चक्कर और वकील की फीस देने से अच्छा है कि फैसला ऑन द् स्पॉट कर दिया जाये. 


अपराध की श्रेणी में आया बदलाव
अपराध का दायरा, अपराध के तरीके और अपराधियों की प्रवृति भी बढ़ी है, अलग-अलग हुई है. पहले सिर्फ लूटपाट, डकैती, हत्या जैसी घटनाएं होती थी, पर अब बलात्कार जैसे अपराध आम हो गये हैं, यहां तक की मासूम बच्चियों तक से इस तरह की घटना को अंजाम दिया रहा है, जिसे अपने समाज और अपने आस-पास में होते देख जन मानस के अंदर एक गुस्सा है, जो अपराधियों को देखते ही फूट पड़ता है, शायद भीड़ यह सोचता है कि अगर अपराधी ही नहीं रहेंगे तो अपराध कैसे होगा, भीड़ का मकसद यह भी होता होगा की अपराधियों के इस तरह के अंजाम को देख कर अपराधी डर जाये सुधर जाये. लेकिन इतना तो तय है कि कानून का डर अब ना अपराधियों को है और ना ही हत्या करने वाली भीड़ को. यह हमारे समाज के लिए एक चिंता का विषय है.

आंकड़े
जुलाई 2018 के आकडों के मुताबिक 4 साल में मॉब लिंचिंग के 134 मामले  सामने आये.
20 मई 2015,
राजस्थानमीट शॉप चलाने वाले 60 साल के एक बुज़ुर्ग को भीड़ ने लोहे की रॉड और डंडों से मार डाला
2 अगस्त 2015 
उत्तर प्रदेशकुछ गो रक्षकों ने भैंसों को ले जा रहे 3 लोगों को पीट पीटकर मार डाला
28 सितंबर 2015 दादरी, यूपी 
52 साल के मोहम्मद अख्लाक को बीफ खाने के शक़ में भीड़ ने ईंट और डंडों से मार डाला
14 अक्टूबर 2015 हिमाचल प्रदेश22
साल के युवक की गो रक्षकों ने गाय ले जाने के शक में पीट पीटकर हत्या कर दी
18 मार्च 2016 लातेहर झारखंड 
मवेशियों को बेचने बाज़ार ले जा रहे मज़लूम अंसारी और इम्तियाज़ खान को भीड़ ने पेड़ से लटकाकर मार डाला
5 अप्रैल 2017 अलवर राजस्थान
200 लोगों की गो रक्षक फौज ने दूध का व्यापार करने वाले पहलू खान को मार डाला
20 अप्रैल 2017 असम
गाय चुराने के इल्ज़ाम में गो रक्षकों ने दो युवकों को पीट पीटकर मार डाला
1 मई 2017 असम
गाय चुराने के इल्ज़ाम में फिर से गो रक्षकों ने दो युवकों को पीट पीटकर मार डाला
12 से 18 मई 2017 झारखंड
4 अलग अलग मामलों में कुल 9 लोगों को मॉब लिंचिंग में मार डाला गया
29 जून 2017 झारखंड
बीफ ले जाने के शक़ में भीड़ ने रामगढ़ में अलीमुद्दीन उर्फ असग़र अंसारी को पीट पीटकर मार डाला
10 नवंबर 2017 अलवर राजस्थान
गो रक्षकों ने उमर खान को गोली मार दी जिसमें उसकी मौत हो गई
20 जुलाई 2018 अलवर राजस्थान
गाय की तस्करी करने के शक में भीड़ ने रकबर खान को पीट पीटकर मार डाला
हलांकि इन घटनाओं के बाद बिहार और महाराष्ट्र से भी मॉब लिंचिग की खबरे सामने आयी.


लोग अपने हाथ में न्याय लेकर चलना चाहते हैं: डॉ श्रिंक सिद्धार्थ सिन्हा  

Dr. Shrink Siddharth Sinha
रिनपास के विशेषज्ञ मनोचिकित्सक डॉ श्रिक सिद्धार्थ सिन्हा मानते है कि भीड़ की मानसिकता एक अकेले व्यक्ति की मानसिकता से अलग होती है. भीड़ की हिंसा भारत में कोई नयी बात नहीं है लेकिन अब इसे मॉब लिंचिग का नाम दे दिया गया है. पुराने जमाने में भी अगर कोई अपराधी मौके पर पकड़ा जाता था तो शायद ही वो बच जाता था. यह जो मानसिकता उभर कर आयी है कि लोग अपने हाथ में न्याय लेकर चलते है, गुस्सा बहुत होता है लेकिन यह गुस्सा तब और फूट जाता है जब अपराध की श्रेणी भी जघन्य हो, बलात्कार  जैसी घटनाएं इसमें शामिल है. इस तरह की घटनाओं में हर आदमी फौरी तौर पर न्याय चाहता है, जो अपराधी इस तरह का अपराध करते है तो उन्हें इस गुस्सा का सामना करना पड़ता है. ऐसे मामले में अपराध तुरंत तय हो जाते हैं और फैसला हो जाता है. ऐसे घटनाओं में एक व्यक्ति का गुस्सा दूसरे व्यक्ति से मिलता है और इस तरह भीड़ का गुस्सा भयावह रूप ले लेता है.

अध्यात्म से दूर हो रहा है समाज: ज्योतिषाचार्य श्रीपति त्रिपाठी
Sripati Tripathi 
ज्योतिषाचार्य श्रीपति त्रिपाठी मानते है कि जिस तरह हमारे घर में हमारे माता पिता हमें सही राह दिखाते हैं उसी तरह धर्म और अध्यात्म इंसान को एक संयमित और बेहतर जीवन जीना सिखाता है. पर अब इंसान अध्यात्म से दूर होता जा रहा है. धर्म अधर्म का फैसला नहीं कर पा रहा है. दिमाग को नियंत्रित नहीं कर पा रहा है क्योंकि धर्म, आस्था से उसका भटकाव हो रहा है. अच्छी धार्मिक और ज्ञान की पुस्तकें नहीं पढ़ रहा है जिसके कारण उसके दिमाग में एक खालीपन भर रहा है जो इंसान को भटकाव के रास्ते पर ले जा रहा है.


Saturday 8 September 2018

यह चुभन सिर्फ हाथों में नहीं थी मेरे दिल में भी थी, लेकिन तुम्हारी डबडबाई आंखे उस वक्त देख नहीं पायी






तुम मुझे कभी समझ नहीं पाओगे..... मुझे याद है जब तुम मुझसे आखिरी बार मिलने आये थे तब तुमने आंखों में आसुं भरकर सिर्फ यही बात कह पायी थी. सच बताऊं तो उस दिन भी मैं तुम्हे जाने नहीं देना चाहता था. जी में आया कि पूरी ताकत से तुम्हारा हाथ थाम लूं, मैने पकड़ा भी लेकिन तुम्हारे हाथ की अंगूठी मुझे चुभ रही थी. यह चुभन सिर्फ हाथों में नहीं थी मेरे दिल में भी थी, लेकिन तुम्हारी डबडबाई आंखे उस वक्त देख नहीं पायी. तुम्हारे जाने के बाद देर शाम तक मैं वही खड़ा था. मुझे उम्मीद थी कि तुम जरूर आओगे,पर तुम नहीं आये. जानते हो उस रात रातभर रूक-रूक बारिश हो रही थी. 


आज फिर वही 16 तारीख है, शुक्रवार की शाम है लगभग साढ़े पांच बज रहा है. आज पूरे 4 साल 6 महिने और 26 दिन बाद तुम मुझसे मिलने आ रहे हो. मेरे मन में कई तरह के सवाल है. इतने दिन तुम कहां थे, क्या किए. आज तुमने मुझे क्यों बुलाया है...इन सब बातों को सोचते सोचते मैं कब यादों में चार चार साल पीछे चला गया मुझे पता ही नहीं चला. अपनी शहर की ऐसी कोई सड़क नहीं बची थी जहां हमदोनो घुमे नहीं थे, तुम्हें हमेशा सबसे स्वादिस्ट चाट खाने की जिद रहती थी और इस चक्कर में हम हर रोज शहर के बीसीयों चक्कर लगा लेते थे. 



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सब कुछ तो ठीक था हमारे बीच, हां बाद के दिनों में मैं थोड़ा वक्त कम देने लगा.क्या करता घर के जिम्मेदारियों का बोझ था,ऑफिस का प्रेशर था, कम उम्र में ही समझदार बन गया. ऑफिस से थककर आता और तुम रात में बात करने की जिद करती....काश उस वक्त मैं तुम्हें समझा होता, तो तेरे बगैर ना जाने कितनी रातें खिड़की के बाहर ताकते हुए नहीं बितानी पड़ती. मैं ख्यालों के उधेड़बुन में खोया हुआ था और तुम मेरे सामने आयी..तुम तो बदल चुके थे. वो अगुंठी जो मुझे चुभी थी वो तुम्हारे इंगेजमेंट की थी...


Wednesday 29 August 2018

आज फिर रास्ता काट गई...यार आज तक तुम्हारे काटने-पीटने की आदत नहीं गयी ना....




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आज फिर रास्ता काट गई...यार आज तक तुम्हारे काटने-पीटने की आदत नहीं गयी ना, स्कूल में दांत से नाखून काटते थे और आज मेरा रास्ता 26वीं बार काट रहे हो. सच बोल रहा हूं अब तो सुधर जाओ एक बच्चे की मां बन गयी हो. आज ही देखा तुम्हारे बच्चे को, पूरा खड़ूस अपने बाप पर गया है नालायक. पर आज सच में बड़ा गुस्सा आया, जी तो किया कि ब्रेक ही ना मांरू, सीधा जाकर तुम्हे मार दूं, और तुम्हारी वही बांये हाथ की सबसे बड़़ी से छोटी उंगली टूट जाये.




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कसम से बड़ी तसल्ली होती, इंगेजमेंट के बाद बड़ी नाच-नाच कर उस अंगुली में पहनी अंगूठी दिखा रहे थे. चिल्ला-चिल्ला कर उसका दाम बता रहे थे, अपने होने वाले खड़ूस पति का नाम बता रहे थे. सच बताऊं तो बड़ा गुस्सा आया था उस दिन. यार एक बताओ मैं जितनी बार तुमसे दूर जाने की कोशिश करता हूं, उतनी ही हर बार मेरे सामने आ जाते हो रास्ता काटने के लिए कहां से टपक पड़ते हो. पिछले महीने की 28 तारीख को बुधवार का दिन था, चिकन खाने का जी कर रहा था, पैसे कम थे तो सड़क  के किनारे ठेले पर चिकन पराठा खा रहा था. जैसे ही पहला निवाला मुंह में डाला तुम सामने हाजिर. यार तुमने क्या मेरे अंदर कोई ट्रैकिंग डिवाइस डाल कर रखा है जो हर जगह पहुंच जाते हो. जब मैं शहर के सबसे बड़े मॉल में होता हूंतब तो तुम नहीं आते हो, लेकिन जब भी फूटपाथ से कुछ खरीदने जाऊं तुम टपक जाते हो. 

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 सच में आज जब तुम  मेरे बाइक के सामने आये तो लगा मार दूं, लेकिन मैने ब्रेक मार दी जानते हो क्यों, क्योंकि मेरे अंदर आज भी तुम्हारे लिए वही अहसास है, जो पहले थी. तुम मेरे बहुत अच्छे दोस्त थे, पर मैं तुमसे कभी कह नहीं पाया. पर सच में अब मेरे सामने कभी मत आना उन घावों को कुरेदने के लिए.

Thursday 16 August 2018

हार नहीं मानूंगा रार नयी ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं, गीत नया गाता हूं. अटल विचार, अटल व्यवहार, अटल व्यक्तित्व को अटल श्रद्धांजलि.



हार नहीं मानूंगा रार नयी ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं, गीत नया गाता हूं. जन-मानस  को झंकृत कर देने वाली यह आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गयी, अभी तो आजादी के जश्न का रंग भी नहीं उतरा था किसे मालूम था की 16 अगस्त ऐसा मनहूस खबर लेकर आयेगी. भारत रत्न, प्रखर कवि, शानदार राजनेता और एक बेहतरीन नेतृत्व क्षमता रखने वाले देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का निधन हो गया. उनका जन्म 25 दिसंबर 1924 में ग्वालियर में हुआ था. उन्होंने तीन बार बतौर प्रधानमंत्री देश का प्रतिनिधित्व किया था. 66 दिनों तक एम्स में जिंदगी की जंग लड़ने के बाद आखिर कार वो जिंदगी की जंग हार गये. उनके किडनी और मूत्राशय में इंफेक्शन था. वो लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर चल रहे थे.



उनका राजनीतिक जीवन काफी लंबा रहा लेकिन कोई भी विवाद उनसे नहीं जुड़ा. वे पूर्व पत्रकार और मशहूर कवि थे. भारतीय जनसंघ की स्थापना में अटल बिहारी बाजपेयी की भूमिका सराहनीय रही. अटल बिहारी बाजपेयी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया. चार दशक तक राजनीति में सक्रिय रहे. 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष रहे. 1996 में पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने. उनके भाषण में लोगों को बांधने की अदभूत क्षमता थी. राष्ट्रीय स्वयं सेवक की विचारधारा में पले- बढ़े अटल जी राजनीति में उदारवाद और समता एवं समानता के समर्थक माने जाते थे. उन्होंने अपनी विचारधारा को कभी कीलों से नहीं बांधा.  

उन्होंने राजनीति को दलगत और स्वार्थ की वैचारिकता से अलग हट कर अपनाया और उसको जिया. राजनीतिक जीवन के उतार चढ़ाव में उन्होंने आलोचनाओं के बाद भी अपने को संयमित रखा. राजनीति में धुर विरोधी भी उनकी विचारधारा और कार्यशैली के कायल रहे. पोखरण जैसा आणविक परीक्षण कर दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के साथ दूसरे मुल्कों को भारत की शक्ति का अहसास कराया. कविताओं को लेकर उन्होंने कहा था कि मेरी कविता जंग का एलान है. राजनीतिक सेवा का व्रत लेने के कारण वे आजीवन कुंवारे रहे. उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लिए आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया था. अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी राजनीतिक कुशलता से भाजपा को देश में शीर्ष राजनीतिक सम्मान दिलाया. दो दर्जन से अधिक राजनीतिक दलों को मिलाकर उन्होंने राजग बनाया जिसकी सरकार में 80 से अधिक मंत्री थे. जिसे जम्बो मंत्रीमंडल भी कहा गया. इस सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. 


अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में कभी भी आक्रमकता के पोषक नहीं थे. वैचारिकता को उन्होंने हमेशा तवज्जो दिया. पत्रकारिता ही उनके राजनैतिक जीवन की आधारशिला बनी. उन्होंने संघ के मुखपत्र पांचजन्य, राष्ट्रधर्म और वीर अर्जुन जैसे अखबारों का संपादन कियाण. 1957 में देश की संसद में जनसंघ के सिर्फ चार सदस्य थे जिसमें एक अटल बिहारी वाजपेयी भी थे. संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण देने वाले अटलजी पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे. उन्होंने सबसे पहले 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. बाद में 1957 में गोंडा की बलरामपुर सीट से जनसंघ उम्मीदवार के रूप में जीत कर लोकसभा पहुंचे. 

इंदिरा गांधी के खिलाफ जब विपक्ष एक हुआ और बाद में जब देश में मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो अटल जी को विदेशमंत्री बनाया गया. इस दौरान उन्होंने अपनी राजनीतिक कुशलता की छाप छोड़ी और विदेश नीति को बुलंदियों पर पहुंचाया. बाद में 1980 में जनता पार्टी से नाराज होकर पार्टी का दामन छोड़ दिया इसके बाद बनी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में वह एक थे. उसी साल उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी. इसके बाद 1986 तक उन्होंने भाजपा अध्यक्ष पद संभाला. उन्होंने इंदिरा गांधी के कुछ कार्यों की तब सराहना की थी, जब संघ उनकी विचारधारा का विरोध कर रहा था. कहा जाता है कि संसद में इंदिरा गांधी को दुर्गा की उपाधि उन्हीं की तरफ से दी गई. 

अटल हमेशा से समाज में समानता के पोषक रहे. अटल जी ने लालबहादुर शास्त्री जी की तरफ से दिए गए नारे जय जवान जय किसान में अलग से जय विज्ञान भी जोड़ा. देश की सामरिक सुरक्षा पर उन्हें समझौता गवारा नहीं था. वैश्विक चुनौतियों के बाद भी राजस्थान के पोखरण में 1998 में परमाणु परीक्षण किया. देश को परमाणु शक्ति से लैस करने वाले वो महान व्यक्तित्व अब हमारे बीच नहीं रहे. यह देश अटल जी को हमेशा याद रखेगा. उन्हें विन्रम श्रद्धांजलि, आप हमारे दिल में रहेंगे. अलविदा अटल जी. 






Monday 13 August 2018

नीला वाला वो फूल नीलकंठ है, जो शिवजी को बहुत पसंद है, याद है तुमने ही मुझे पहली बार बताया था....


सावन का महीना था, सुबह से ही बारिश हो रही थी. पता नहीं क्यों आज बहुत दिनों बाद सोचा कि मंदिर हो आंऊ, वैसे भी भगवान से रिश्ता टूटे हुए कई बरस  बीत चूके थे. पर आज मन हुआ कि मंदिर जाकर भगवान को इस जिंदगी के लिए शुक्रिया बोल कर आंऊ. थोड़ी बारिश कम हुई तो बिना छाता लिए ही घर से मंदिर के लिए निकल गया. सोचा उस पहाड़ी वाली शिवजी के मंदिर जांऊ, जहां आखिरी बार तुमने मुझे अलविदा कहा था. 


आज कई बरस बाद उस मंदिर की सीढ़ियां चढ़ रहा था, पर आज मन हल्का था, सीढ़ी चढ़ते हुए एक- एक पड़ाव पार कर रहा था. जैसे-जैसे सीढ़ियां चढ़ता जा रहा था, आंखों के सामने से वो तुम्हारे साथ बीताये  गये आखिरी पल सिनेमा स्क्रिन की तरह नाच रहे थे. बारिश से सीढ़ियां भी गीली हो रही थी और मेरे अंदर की बारिश से मैं भी गीला हो रहा था, आधी सीढ़ियां चढ़ जाने के बाद तो मुझे लगा जैसे मैं यह क्या कर रहां हूं, मुझे वापस चले जाना चाहिए, लेकिन मन के अंदर से ही आवाज आयी की आखिर कब तक भागोगे खुद से सामना करो इस सच का कि जिसके लिए तुम सबकुछ छोड़ चुके हो वो अपनी जिंदगी में सबकुछ हासिल कर रही है. उसने तुम्हारे लिए क्या छोड़ा जो तुम उसके  लिए छोड़ रहे हो, डरे हुए मेरे मन ने धीरे से जवाब दिया, प्यार भी तो मैने ही किया था. इस उधेड़बुन में कब मंदिर की सीढ़ियां चढ़कर मुख्य मंदिर में पहुंच गया पता ही नहीं चला, शिवलिंग पूरा नीले पीले लाल और सफेद फूलों  और बेलपत्र से  ढंका हुआ था. नीला वाला वो फूल नीलकंठ है, जो शिवजी को बहुत पसंद है, याद है तुमने मुझे पहली बार बताया था 


मैं पूजा करने लगा, ऐसा लग रहा था मेरे मन का गुस्सा फूट कर बाहर निकलने वाला है, और भगवान मुझे सांत्वना दे रहे हैं कि जो हुआ सो हुआ अब आगे बढ़ जाओ, पर कैसे बढ़ूं, इस मंदिर की सीढ़ियां भी तो मैने पहली बार उसके साथ ही पार की थी. मैं अगरबत्ती जलाने लगा, मुझे याद आया कि हर बार अगरबत्ती मैं पकड़ता था और माचिस तुम जलाते थे, पर आज मैं अकेला था. पूजा करने के बाद मंदिर के नीचे गया जहां पर नारियल फोड़ने के लिए स्थान बना आ था, तुम मुझे अक्सर कहती थी कि नारियल एक बार फोड़ना चाहिए, मैने एक बार में नारियल फोड़ा. आज पहली बार मैने भगवान से पूजा में तुम्हें नहीं मांगा. पूजा करने के बाद मैं सीढ़ियों से नीचे आ रहा था.  मैं उतरते हुए उस मोड़ पर पहुंचा जहां से हमलोग अलग हो गये थे, मैं उस मोड़ पर पहुंचा तो मेरी धड़कने अचानक तेज हो गयी, ये वहीं अहसास था जब तुम सामने होती थी, तो क्या आज फिर तुम आस-पास  हो, आगे बढ़ा तो देखा सच में तुम आ रही थी. सर पर दुपट्टा और हाथों में पूजा की टोकरी, कितने बरस बीत गये थे आज तुमको देखा, तुम उतनी ही सुंदर लग रहे थे. हां बीतते हुए वक्त ने तुम्हारे बालों और चेहरे में अपनी छाप छोड़ दी थी. मैं तुम्हें देख ही रहा था कि तुम नजर झुकाये मेरे सामने से गुजर गये तुमने तो मुझे देखा भी नहीं, क्या इतना बदल गये थे तुम, अपनी जिंदगी में आगे बढ़ते हुए तुम सीढ़ियों से उपर जा रहे थे, और मैं वहीं पर खड़ा तुम्हें देख रहा था. 


तुम्हारे इस तरह चले जाने से मेरे पैर जड़ हो गये थे लेकिन पता नहीं अचानक मेरे पैर में कहां से जान आ गयी और मैं बेतहासा सीढ़ियों से उपर भागा, मुझे लग रहा था मैं तुम्हें रोक कर पूंछु की इतने साल तुमने क्या किया, क्या एक बार भी तुम्हें मेरी याद नहीं आयी. तबतक हम दोनों उसी शिवलिंग के सामने थे. हाथ जोड़कर आंखे बंद किये पता नहीं क्या मांग रहे थे. तुम्हें ऐसे देखकर हमेशा मैं कहता था कि तुम कितनी सुंदर दिख रही हो, क्या तुम आज वही सुनने की कोशिश कर रहे थे. माफ करना लेकिन आज मैं नहीं कह सकता था, जमाने और अपने ही प्यार की कसम ने मुझे रोक रखा था, और कहता भी तो कैसे तुम्हारे ठीक बगल में तुम्हारे पति तम्हारे बच्चे को गोद में लिए बता रहे थे, यह नीला फूल नीलकंठ है, यह भगवान शिव को बहुत पसंद है. उसके बाद तुम्हारे पति ने अगरबत्ती पकड़ा और तुमने माचिस से अगरबत्ती जलायी. मैं तो अकेले अगरबत्ती जलाना सीख गया, पर तुम आज तक नहीं सीख पाये. अपने पति में तुमने मेरा अक्स तो देख लिया लेकिन मैं किसी में तुम्हें नहीं देख पाया. 

फिर मैं मंदिर से सीढ़ियां उतरने लगा, मुझे यह यकीन हो गया था कि वाकई अपनी जिंदगी में तुम आगे बढ़ गये हो. पर मैं उसी मोड़ जाकर रुक गया, कुछ देर बाद तुम उसी जगह पर थे, उसी  बेंच पर उसी जगह बैठकर ऊंचाई से नीचे देख रहे थे. मैंने नजर बचाकर तम्हें देखा, तुम अकेले थे, और तुम्हारें आखों के रास्ते तुम्हारा सब्र गालों पर उतर रहा था, तुम उसे छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहे थे. धीरे-धीरे बारिश बढ़ रही थी, और मैं सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था...





Friday 10 August 2018

जिनका बचपन पांच इंच के स्मार्टफोन और 32 इंच की एलइडी टीवी के साथ बीत रहा है वो कैसे होंगे...

कहां भागे जा रहे हो ? थोड़ा रुको, संभलों, नहीं अभी समय नहीं है. अभी समय नहीं है का तात्पर्य क्या है, कि हमे इतने रफ्तार में आगे बढ़े, आगे जाये की सब कुछ पीछे छूट जाये, हमें गिरने का डर नहीं हो, गिर कर चोट लगने का डर नहीं हो, पर वाकई में देखने से लगता है डर तो नहीं है. अंधी दौड़ में सब कुछ पीछे छोड़ते हुए, ठीक उसी तरह जैसे बम फूटने के बाद धुएं का गुब्बार क्षण भर में गायब हो जाता है.  

आज इंसान भी वैसे ही गायब होता जा रहा है. किसी को किसी के खोज खबर लेने की फुर्सत नहीं है. हम सिर्फ और सिर्फ खुद में केंन्द्रित होते जा रहे हैं. आत्ममुग्धता अच्छी बात है, लेकिन यह उतनी ही बुरी बात है अगर सिर्फ खुद  के लिए सोचा जाये. जिंदगी में भागदौड़ अच्छी बात है, आगे बढ़ने की होड़ अच्छी बात है. यह सच है कि जीवन बदला है, जीने का तरीका बदला है, पर बदलते जीवन में हम अपने पौराणिक परंमपराओ की बलि चढ़ा दे यह तो पूरी तरह अनैतिक है. 


अब छोटे बच्चों में अपना बचपन नहीं दिखाई देता है. ना वो बचपना दिखता है, ना वो अल्हड़पन दिखता है. कहां खो गये सब, कहीं ऐसा तो नहीं कि हमने अपने बचपन को जी लिया और उसकी लिखावट को हमेशा के लिए मिटा दिया ताकि कोई उसे पढ़ नहीं सके. या फिर हम वो माता-पिता नहीं बन पा रहे हैं, जैसे हमारे है, या हमारे माता-पिता वो दादा-दादी, नाना, नानी नहीं बने पा रहे हैं जैसे हमारे थे. यह सोचने वाली बात है कि हमारी पीढ़ी में हमने जो सीखा वो अपने बाद की पीढ़ी का बता नही पाये तो हमारे बाद वाली पीढ़ी क्या बता पायेगी. यह सच है. 



हमारा बचपन घर से ज्यादा स्कूल, खेल का मैदान, खेत खलिहान में बीता तब हम ऐसे हो गये हैं, जरा सोचिये कि जिनका बचपन पांच इंच के स्मार्टफोन और 32 इंच की एलइडी टीवी के साथ बीत रहा है वो कैसे होंगे. माना आगे बढ़ना है,लेकिन इतने आगे मत बढ़ जाइए की आप अकेले हो जाये और फिर सब कुछ हासिल होने के बाद भी कुछ ना हो.

Tuesday 20 March 2018

शायद फिर से वो चिरई वापस आ जाये वाऔर फिर से उसी बांस की झुरमुठ पर बैठकर मेरी जेठ की अलसायी शाम को अपनी चहचहाहट से तरोताजा कर दे...विश्व गौरेया दिवस विशेष






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गौर से देखिये यह वही गौरेया है जो कभी झुंड के झुंड आपके घर आंगन में, मुंडेरों पर, छत में चहचहाती हुई अठखेलियां किया करती थी. पहचान में नहीं आ रहा है ना, आपको याद भी नहीं है कि आपने अंतिम बार इस छोटी से प्यारी सी चिड़ियां को कब देखा था. पर इसे पहचानने के बाद मुझे यकिन है कि सभी को उनका बचपन जरुरत याद आयेगा, जब फुदकती हुई गौरेया उनके आस-पास घुमती थी. 

फोटो साभार: इंटरनेट
सुबह की शुरुआत उनके चहचहाने से होती थी और शाम की थकावट भी उसी चहचहाहट में कहीं गुम सी हो जाती थी. पर अब ना जाने वो कहां चली गयी है. अब तो वो दिखायी भी नहीं पड़ती है. उसका चहचहाना मानों शांत सा हो गया है. अब तो आख भी अलार्म सुनकर ही खुलती है. 

यह कहीं राख बनकर उड़ होंगे....और उस आग की तपिश में आपके अपने भी जलेंगे.  

आकंड़े बताते है कि गौरेया की संख्या 60 से 80 फीसदी तक कम हो गयी है. गौरेया चिड़िंया हम इंसानों की सबसे अच्छी दोस्त और करीबी मानी जाती है, यह घरों में ही घोंसला बनाकर रहती है. अब भी गांवों के पूराने घरों में इनके घोंसले दिख जायेंगे, पर अब वो घोंसले वीरान हो चुके हैं, उन्हें झाड़ने पर गौरेया के पंख भी नजर नहीं आते हैं. 

फोटो साभार: इंटरनेट 
दरअसल हम इंसानों की महत्वाकांक्षा और सुविधाओं का उपभोग करने की बुरी आदत ने गौरेया को आज इस कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है. खेतों में इतने कीटनाशक का प्रयोग होता है कि खेतों में अब कीट-फतिंगा होता ही  नहीं है जो गौरेया का चारा है. मोबाइल रेडियेशन, प्रदूषण को यह छोटी से मासूम चिड़ियां बर्दास्त नहीं कर पाती है इसलिए यह हमसे दूर होती जा रही है. इनकी संख्या में काफी तेजी से गिरावट आ रही है. गौरेया के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए बिहार सरकार ने गौरेया को राजकिय पक्षी भी घोषित कर दिया है लेकिन उसके बावजूद गौरेया दिख कहां रहें हैं. 

फोटो साभार: इंटरनेट 
मेरा बचपन गांव में गुजरा, मेरे लिए चिड़ियां का मतलब ही गौरेया था. मिट्टी के कच्चे मकान में मेरे साथ गौरेया भी रहती थी. कई बार उनके अंडे हमारे घरों के अंदर गिरकर फूट जाते थे. घर बाहरी उंची दिवार पर बड़े-बड़े छेद बने हुए थे जिसमे वे रहते थे और दिन भर आंगन में और घरे के सामने स्थित अमरूद के पेड़ पर चहचहाते रहते थे.शाम के वक्त बांस की झुरमुठ से उनकी चहचहाहट सुनाई पड़ती थी लेकिन अब जब गांव जाता हूं तो एक भी गौरेया नजर नहीं आती है. घर तो वही है लेकिन उनके घोंसले खाली हो गये हैं.  पता नहीं दिल करता है उन्हें फिर से बुला लूं लेकिन शायद वो नहीं आयेंगे. हमारी गलतियों के कारण ही वो हमसे दूर हो गये हैं और अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं. क्या एक बार हमे उनका साथ नहीं देना चाहिए, शायद  फिर से वो चिरई वापस आ जाये वापस आ जाये और फिर से उसी बांस की झुरमुठ पर बैठकर मेरी जेठ की अलसायी शाम को अपनी चहचहाहट से तरोताजा कर दे...